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मद्रावधानी-छोरसमुद्रदल्नु सुखसहयाविनोददिं राज्यं गेग्युत्तमिरे ॥ भीमन्महाप्रधानं हेगडे शिव-राज''नम्बिद्दडे सोमय्यतु भीमत-माणिकद ...... बिनालयक्के पार्थिवसंवत्सरद आषाढ़-सुद्ध-पाडिमि-आदिवार ... ... अतितिथियराहार-दानक माणिक्यदोळल माडि... ... .."चतुस्सीमेयलि गेदे गात्त कम्बल माळ गाळ नूळ .." तोरे मग होले मग यिनितुमं धारा-पूर्वक माडि कोट्टदत्ति
बसडिगे बिट्टी-धर्म ..... करं सलिसुतिर्दवर्ग पुण्यं ।
....... अळिदवर्ग । पसु ब्राह्मणन कोन्द गति समनिसुगुम् ॥ श्रीमतु माणिक्यदोळल मूलस्थ चन्दककोजन सुपुत्र परवादिःमलोज...... शासनम ....... बाळिसबदु । वीतराग नमोऽस्तु मङ्गलमहा श्री [जिससमय, ( अपने वैदिक पदों सहित ), प्रताप-चक्रवर्ती (१ नरसिंह-देव) अपने राज्यका सुख और बुद्धिमत्तासे शासन करते हुए राजधानी दोरसमुद्र में विद्यमान थे:-महाप्रधान हेगडे शिवराज ..... सोमय्प ने माणिक्य-दोळलु जिनालयको दान दिया।
चण्डककोज, जो माणिक्यदोळलुका मुख्य आदमी था, के पुत्र परवादि मनोज इस शासनकी रक्षा करेगा । वीतराग को नमस्कार।
[Eo, IV Krishnarajapet Tl, no 38 ]
३२६ ' खजुराहो-संस्कृत
(विक्रम सं० २०१, माघ पदो) ॐ ॥ ग्रहपत्यन्वये श्रेष्ठिपाणिधरस्तस्य सुत श्रेष्ठि ति-(त्रि) विक्रम तथा आल्हण । बाममीधर ॥ संवत् १२०५ । माघ वदि ५॥