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जैन - शिलालेख - संग्रह
राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रार्क -तारं सलुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि समविगत-पञ्च-महाशब्द महा-मण्डलेश्वरं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलाम्बरमणि सम्यक्त्व-चूड़ामणि मलेपरोळ, गण्डाद्यनेक नामावली समलंकृतरप्प श्रीमत् त्रिभुवनमल्ल तळकाडु-कोत्त- नङ्गलि गङ्गवाडि-नोळम्बवाडि-बनवसेहानुअतु- इलसि - गोण्ड भुजबल वीरगङ्ग होयसळ देवरु श्रीमद्- राजधानि - दोरसमुद्र बीडिनलु सुख-संकण-विनोदृदिं पृथ्वी- राज्यं गेप्पुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीविगळ श्रीमन्महाप्रधानं हिरिय मरियाने दण्डनायंकर मगं दाकरस- दण्डनायकर पुत्ररु द्रोह - घरह गङ्गपटय-दण्डनायकर बाचरस- दण्डनायकर सोवरस- दण्डनायक रळियन्दिरुमप्प श्रीमन्महा - प्रधानं हिरिय-भण्डारि-मरियाने दण्डनायकरुं श्रीमन्महाप्रधानं दण्डनायकं भरतरुप्पालु शक वर्ष १०६० नेय पिङ्गळ -संवत्सरद पुष्य-सु १० श्रदिवारदुत्तरायण संकान्तियलु तुलापुरुष महादानदलु तम्म नेलेपूरु सिन्दङ्गेरेय बसदिगे श्रीविष्णुवर्द्धन होय्सल- देवर कय्यलु धारा- पूर्वकं हडेदु विट्ट सवगोन - हल्लिय सीमा-सम्बन्धमेतेन्दडे ( आगेकी २० पंक्तियों में सीमाओं की चर्चा है तथा हमेशा का अन्तिम श्लोक )
( दक्षिण मुख )
जय-जया- शरणं रण- क्षिति-हत- क्षत्रं हत क्षेत्र - निर्- | द्दय-निर्धारित - देह - लोहित-पयश - शातासि शातासि दुर्- | जय धारा-चकितारि-रक्षण-भुना - दण्डं भुजा दण्ड-को- | टि-युवद् वीर-वधू प्रमोदि भरत - श्रीमच्चमूवल्लभं ॥ नय-युक्त-क्रम-विक्रमं क्रम-नमद्-भू-मण्डलं मण्डल - | प्रिय- वृत्तं प्रिय वृत्त-संगत-गुण- ग्रामं गुण- ग्रामणी- । नयनानन्दकरं करार्पित- धनुर्ज्या - राव - दूरीकृता । रि-यशो - राचि नितोद्धतानि भरत - श्रीमच्च मूवल्लभम् ॥ अवनी- नूत-यश यशो-घवलिताशा-मण्डलं मण्डला- 1
- विलुनारि-बलं बल-प्रभु-नमच्चञ्चच्छिखा-शेखरी- ।