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________________ प्रकाशकीय निवेदन - जैन-शिलालेख संग्रह का पहला भाग सन् १६२८ में निकला था। दसरा भाग उसके चौबीस वर्ष बाद सन् १९५२ में और यह तीसरा भाग उसके लगभग पाँच वर्ष बाद प्रकाशित हो रहा है। अर्थात् सब मिलाकर इन तीन भागों के प्रकाशन में कोई तीस वर्ष लग गये। पहले भाग के साथ में सुहृद्वर डा. हीरालाल जी ने उसके लेखों का १६२ पृष्ठों का एक सुविस्तृत अध्ययन लिखा था। दूसरे भाग के साथ उसके लेखों का परिचय देने का कोई प्रबन्ध न हो सका, इसलिए अब इस तीसरे भाग में दोनों भागों के लेखों का अध्ययन करके डा० गुलाबचन्द्र जी चौधरी, एम० ए०. पीएच० डी०, प्राचार्य ने १७५ पृष्ठों की भूमिका लिख दी है जिसमें जैन मम्प्रदाय के संघों, गणों, गच्छों, राजवंशों, सामन्तों, श्रोष्ठियों, जैन-तीर्थों श्रादि पर विस्तृत प्रकाश डाला है। ___ डा० चौधरी स्याद्वाद विद्यालय काशी के लातक हैं और इस समय नालन्दा के पाली बौद्ध विद्यापीठ में पुस्तकाध्यक्ष एवं प्राध्यापक हैं । दो वर्ष पहले इन्हें हिन्दूविश्वविद्यालय से "पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ नादर्न इण्डिया फ्राम जैन सोसेंज' से ( जैन स्रोतों से प्राप्त किया गया उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास ) महानिबन्ध पर 'डाक्टरेट' की उपाधि मिली थी। चूँकि जैन साधनों से उक्त महानिबन्ध तैयार किया गया था, और इसके लिए इन्हें अनेक शिलालेखों की भी छानबीन करनी पड़ी थी, इस लिए इस ग्रंथ की यह भूमिका लिखने के लिए वही उपयुक्त समझे गये और उन्होंने भी मेरे आग्रह को स्वीकार कर लिया। मुझे बड़ी प्रसनता है कि उन्होंने यह काम एक इतिहास-संशोधक की दृष्टि से बड़ी लगन के साथ परिश्रमपूर्वक किया है । इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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