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१५४ यहाँ एक प्रभावक छैन मुनि रामचन्द्र थे. जो राज्यमान्य मुनि ( भूपतिवृन्दवन्दितपदः) थे। ये सर्वसंघतिलक देवनन्दि मुनि के शिष्य थे जो कि राज्यमान्य लोक नन्दि मुनि के शिष्य थे (३७०, ३७१)। १५ वीं शतान्दी में यह स्थान ग्वालियर के मट्टारकों के अधीन था (६४३ )।
खजुराहो के जैन और हिन्दू मन्दिर भारतीय शिल्पकला के विशिष्ट नमूने है। यहाँ से प्राप्त अनेक लेखों में से केवल १२ मूर्तिलेख इस संग्रह में है इनमें कुछ लेखों से विदित होता है कि यह स्थान ग्रहपति वंश ( गहोई वैश्यों ) का प्रमुख केन्द्र था। यहां के सन् ६५५ के एक लेख से मालुम होता है कि यहाँ जिननाथ का एक प्रसिद्ध मन्दिर था जिसे चन्देल नरेश धंग के राज्य में पाहिल्ल नामक सेठ ने अनेक वाटिकायें बगीचे दान में दिए थे (१४७ )।
इसी तरह महोबा मी चन्देल नरेशों के समय में एक जैन केन्द्र था। इस संग्रह में इस स्थान से प्राप्त सं० ११९६ से.सं० १२२१ अर्थात् ५२ वर्ष के ८ मूर्ति लेखों से विदित होता है कि यहाँ जैन लोग निर्विघ्न रीति से सोत्साह प्रतिष्टा आदि कराते थे। ले० नं. ३३७, ३४२ पर चन्देल नरेश मदन वर्म का नाम और ले० नं० ३६५ में परमर्दि का नाम एवं राज्य संवत्सर दिया हुआ है।
(आ) इस संग्रह में पश्चिम भारत के संगृहीत लेखों को देखने से विदित होता है कि इस क्षेत्र में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनेक जैन केन्द्र थे जैसे बाबू , सिरोही, अजमेर, अनहिलवाड़, खम्भाल, दोहद, दिलमाल, नडलाई, नडोले जैसलमेर, पालनपुर, बयाना आदि । गिरनार से प्राप्त २-३ लेख दिग० सम्प्रदाय के हैं, शेष बहुसंख्य लेख श्वेताम्बर सम्प्रदाय के हैं। शत्रुक्षय से ११८ संग्रहीत लेखों में दिगम्बर सम्प्रदाय का केवल एक लेख (७०२) है जिसमें मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुन्दकुन्द अन्वय के भट्टारकों की पट्टावली दी हुई है। यहां सं० १६८६ में अहमदाबाद के संघपति हुवड़ भासीय श्री रखसी के वंशजों ने. जब कि शाहजहाँ का राज्य प्रवर्तमान था, श्री शान्तिनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी।