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२. प्राचार्यरन मुनि वैरदेवः विमुक्तयेऽकारयदीर्घतेजाः ॥ - जिसका माव है कि किसी मुनि वैरदेव ने निर्वाण प्राप्ति के हेतु दो गुफाएं बनवायी, ___बन० कनिंघम ने श्राा० स० रिपो० के प्रथम भाग में इसकी प्रतिलिपि छापी थी और टी० लाख महोदय ने इसे पढ़कर एपि० इरिडका के 5वें भाग में प्रकाशित कराया। ब्लांख महोदय इसे लिपि विद्या की दृष्टि से तीसरी या चौथी शताब्दी का कहते हैं। इस लेख के श्रा० वैरदेव कोन थे यह ठीक तरह से नहीं कहा जा सकता। कुछ विद्वान् इसे श्वेताम्बर पट्टावलियों के वनस्वामी मानते हैं जिनका समय सन् ५७ ई० है । हमारा अनुमान है कि ये वैरदेव ले.नं०६० (सन् ३६० के लगभग ) के वीरदेव होना चाहिये जो कि मूलसंघ के प्राचार्य थे और जिनके सम्बंध में लेख में 'श्रीमद् बीरदेवशासनाम्बरावभासनसहनकर' अर्थात् भग० महावीर के शासन रूपी आकाश को प्रकाशित करने वाला सूर्य, विशेषण दिया गया है। लेख की लिपिका समय ३ री ४ थी शताब्दी, हमें वैरदेव से वीरदेव का साम्य स्थापन करने को बाध्य करता था। यदि यह अनुमान ठीक है तो मानना होगा वीरदेव का प्रभाव उत्तर भारत में राजएह की अोर और दक्षिण भारत में कबड प्रान्त में बराबर था ।
इस स्थान के दो अन्य लेख १८ वीं शताब्दी के हैं जिनसे सिद्ध होता है कि यह स्थान जैनों का अविच्छिन रूप से तीर्थ रहा है।
राम नगर-अहिच्छत्र ) से प्राप्त अनेकों लेखों में से केवल दो लेख (५३,८४३) इस संग्रह में दिये गये है। ले. नं०८४३ के कोत्तरि शब्द से हात होता है कि यहाँ अनेकों जैन मन्दिरों के ढेर थे। अब भी वहाँ कोत्तरि के
१-जर. बिहार.रि. सो०, भाग ४६, अंक ४, पृष्ठ ४००-४१२, उमाकान्त
प्रेमचंद शाह-राजगिर की बैन गुफा सोन भाडार के मुनि वैरदेव ।