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१३.
पति ने होसल विष्णुवर्धन, नरसिंह और बालाल द्वितीय के राज्य में होय्सल बंश की सेवा की थी।
१५. शान्तियण्ण-ले० नं. ३४७ में उक्त नरेश के एक और जैन सेनापति शान्तियएण का नाम मिलता है। वह पारिसरण और बम्मलदेवी का पुत्र था । पारिसरण मरियाने दण्डनायक का दामाद था। लेख में उसे महाप्रधान, पट्टिस भण्डारि ( भालों का अध्यक्ष) कहा गया है। उसने युद्ध में शत्रुओं को परास्त कर अन्त में अपने प्राण दे दिये। उस पर नरसिंह ने उसके पुत्र शान्तियएण को करगुएड का स्वामी तथा सेना का दण्डनायक बना दिया । उक्त स्थान में शान्तियएण ने अपने पिता की स्मृति में एक बसदि बनवायी और उसकी सुरक्षा के लिए दान दिया । उसके गुरु मल्लिषेण पण्डित थे।
१६. ईश्वर चमपः-ले० नं० ३५२में उक्त नरेश के राज्य में एक जैन सेनापति का और उल्लेख है । वह है महाप्रधान, सर्वाधिकारी, दण्डनायक एरेयङ्ग का पादोपजीवी ईश्वर चमूप । ये दोनों श्वसुर दामाद थे । ईश्वर चमूपति ने जिनालयों की मरम्मत करवायी और उसकी पत्नी माचियक्क ने मरदबोलल नामक पवित्र तीर्थ में एक जिन मन्दिर एवं एक तालाब बनवाया । उसके गुरु का नाम गण्डविमुक्त मुनिप था । ___नरसिंह के उत्तराधिकारी बबाल द्वितीय के समय भी होयसल राज्य का भाम्य निर्माण करने वाले कुछ जैन सेनापति थे।
१७. रेचरसः-ले० नं. ४६५में उल्लेख हैकि बल्लालदेवकी रत्नत्रय और धर्म में हढ़ता सुनकर कलचूर्य कुल के सचिवोत्तम रेचरस ने बलालदेव के चरणों में आश्रय पाकर अरसियरे में सहस्रकूट बिन की प्रतिमा स्थापित की और मन्दिर की व्यवस्था के लिए राजा बल्लाल से हन्दरहालु ग्राम प्राप्त कर अपने वंश के गुरु सागरनन्दि सिद्धान्त देव को सौंप दिया। उक्त जिनालय का नाम एल्कोटि चिनालय था। इस रेचरस के सम्बन्ध में ले० नं. ४०८ में लिखा है कि वह ३३ वर्ष पहले सन् १९९२ में कलरिवंथ के नरेश विमल का दण्डाधिनाय था। उक्त लेख में इसकी अनेक विष प्रशंसा एवं वर का परिचय दिया गया है।