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की मित्रता को पहिचाना जा सकता है । मूल उबरणों को देने से इस अन्य की उपयोषिता और अधिक बढ़ गयी है। वस्तुतः यह सही पर्व में सन्दर्भ ग्रन्थ बन गया है। इसमें विकसितः दिसम्बर अम्चों का उपयोग किया गया है। पके पार भाग इस प्रकार है
भाग 1 'म' से 'मी' वर्ण तक पृष्ठ 504 प्रकाशन कास सन् 1970 भाग 2 'क' से 'न' वणं तक , 634 , , 1971 माम 3 'प' से 'ब' वर्ष तक , 638
॥ 1972 भाग 4 '' से 'ह' वर्ष तक , 544
1973 इतने छोटे टाइप में मुद्रित 2320 पृष्ठ का यह महाकोष निस्संदेह वणी जी की सतत साधना का प्रतीक है। उनका जन्म 1921 में पानीपत में हुमा। पापके पिता जयभगवान एव्होकेट जाने-माने विचारक पौर विद्वान् थे। मापकी बिजीविषा ने ही सन् 1938 में पापको क्षयरोग से बचाया तथा इसी कारण एक ही फेंकर से पिछले वर्ष तक अपनी साधना में लगे रहे। एम० ए० एस० अंसी उच्च उपाधि प्राप्त करने के बावजूद प्रति पय में उनका मन नहीं रम सका और फलतः 1957 में घर से संन्यास से लिया और 1963 में शुल्लक दीक्षा ग्रहण की। प्रकृति से अध्यवसायी, मृदु और निस्पृही वर्णीजी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रेय भी प्रकाशित हुए हैं जिनमें शांतिपथ-प्रदर्शक, नये दर्पण, जैन-सिद्धान्त शिक्षण, कर्म-सिद्धान्त, श्रवा-बिन्दु, द्रव्य-विज्ञान, कुन्दकुन्द-दर्शन मादि नाम उल्लेखमीय है। 10. चैनलममावती
प्रस्तुत ग्रंथ के सम्पादक पं० बालचन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री हैं, जिन्होंने अनेक कठिनाइयों के बावजूद इस ग्रन्थ का सम्पादन किया। उनका जन्म सं. 1962 में सोरह (झांसी) में हुमा और शिक्षा का बहुवर भाग स्यावाद विद्यालय वाराणसी मे पूरा हुमा । सन् 1940 से लगातार साहित्यिक कार्य में जुटे हुए हैं, गे. हीरालाल जी के साथ उन्होंने षट्समागम (धवला) के छह से सोलह भाग तक का सम्पावन मोर भनुवाद किया। इसके अतिरिक्त जीवराब जैन ग्रंयमाला से मारमानुशासन, पुण्यावर कथाकोल, तिलोयपष्णत्ति मौर पपनन्दिपविधतिका ग्रंथ हिन्दी अनुवाद के साप प्रकाशित हुए। लक्षणावली के अतिरिक्त वीर सेवा मन्दिर से ध्यानयतक भी विस्तृत प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हुमा है । पाप मौन साधक और कर्मठ अध्येता है।
___लमणावली एक मैन पारिभाषिक शब्दकोश है। इसमें लगभग 400 दिनमार मौर श्वेताम्बर ग्रन्थों से ऐसे सम्दों का संकलन किया गया है विक्की कुछ