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________________ परीयाक के विकास यहै-बिमों में ऐसी कोई विधा नहीं छोड़ी जिस पर उन्होंने पनी महत्वपूर्ण चलाई हो । प्रस्तुत कृति में हमने जैन धर्म के इन दोनों तत्वों के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डाला है । जैन साहित्य की परम्परा की एक एकके साथ ही उपस्थित किया है। जहां हिन्दी साहित्य को इसलिए पीड़ दिया है कि उपद "हिन्दी चैन काव्य प्रवृत्तियाँ" कि पुस्तक में मारवा है। इसके बाद कुछ जैन दर्शन र साजना के मुद्दों पर प्रकाश डाला । बाब में 'नारी वर्ग चेतना' अध्याय में नारी की कतिपय समस्याओं को व्यावहारिक दृष्टि से समझने-समझाने का प्रयत्न किया है। भाता है," विज्ञान पाठक इन विचारों पर सहानुभूति और बहिष्कार करेंगे। म्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर - 440001 Fr. 28-4-1984 इस पुस्तक में मैने अपने कुछ यों को भी समाहित कर दिया है। सम्मति विद्यापीठ इसे 'जैन सांस्कृतिक पतन के नाम से प्रकाशित कर रहा है । तदर्थ हम उसके प्रभारी हूँ । (डॉ.) श्रीमती पुलता चैन मानद उपनिवेशक
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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