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माहान हसिमोष करमा हावा सामाविको बाबाले का संकल्म मेकर बहेन का पूर्णतः बहिष्कार करवा नारी के ही हाल में पविक है। यह मामशक्ति और प्रतिभा तथा साहस के बल अपने जीवन की हर समस्या को सुलझाने में सक्षम है। वैन वर्शन उसकी इस प्रखर शक्ति की पूर्ण अभिव्यक्ति को स्वीकार करता भी है। बस, समाज में व्याप्त बामपनों को तरजोड़ने का बीड़ा उठा लिया जाये तो समस्या सुलझार की मोर पड़ सकती है। हमारी निर्भीक प्रवृत्ति तथा यथार्पोन्मुख प्रादर्भवादी कृत्ति की पोर हमारा युवा वर्ग भीषि निश्छलता पूर्वक प्राकर्षित होगा तो समस्यामों का समाधान हम सब एक घुट होकर खोज निकालेंगे।
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नारी वर्ग में नमी चेतना लाने के लिए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा जैसे महोत्सव अमृत स्वरूप है। जैन धर्म नारी को समान अधिकार दिये हुए है चाहे वह प्राध्यारिमक क्षेत्र हो या राजनीतिक, सामाजिक हो या धार्मिक । सभी क्षेत्र नारी के परम विकास के लिए खुले हुए हैं। नारी के स्नेहिल सहयोग के बिना ये क्षेत्र मरुस्थल बन जाते है, प्रेम प्रदीप बुझ जाता है और संघर्ष तथा द्वेष की प्राग भभक उठनी है।
पिछले कुछ वर्षों से इन उत्सवों के संदर्भ में अनेक प्रश्नचिन्ह सारे हो रहे है मोर उनके प्रायोजनों को प्रसामयिक बताया जा रहा है। वैसे बात किसी सीमा तक सही है भी । समाज का एक ऐसा भी वर्ग है जो मार्थिक पौर शैक्षणिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुमा है। उसके अभ्युदय की पोर ध्यान दिये बिना यदि हम अपना वैभव प्रदर्शन भौर द्रव्य का अपव्यय करते है तो ऐसे प्रायोजनों पर प्रश्नचिन्ह सड़े होंगे ही। आश्चर्य तो यह है कि विरोष जितना अधिक हुमा, ऐसे प्रायोजनों को संसा उतनी ही बढ़ती गई । इसलिए मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इन प्रायोजनों का पुनर्मूल्यांकन होना मावश्यक है।
अधिकांश मायोजनों की पृष्ठभूमि में सूत्री यशोलिप्सा काम करती है। व्यक्ति की मशोलिप्सा पूरी करने के व्यावहारिक मोर उपयोगी मार्ग और भी खोजे पा सकते हैं। ये मार्य ऐसे हैं जिनके माध्यम से सामुदायिक चेतना जागृत हो सके। माझ प्रदर्शन से बचकर पाय का बहुत माग सामाजिक विकास में समाया जाना पाहिए। पिछले परिवारों को योग और व्यापार के लिए माषिक सरयता दी जाये तथा उनके बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए हर सम्बा भाषिक सहायता पहुंचायी जाये।
मारकर इसमा अधिक सहर्ष होता रहा है कि एक एक वर्ग की नहीं रहना रे को मा
मम