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उस विषमता को मटियामेट करने वाला बह म्यक्तित्व कितना प्रार रहा होगा, गह सहा हा अनुमान अपक्षमा भाता है। सीए विचारों ने सभू मारी को सीहीन माया से मुक्त होने का
मार सि 'भार समानतामांबार सिमा को प्रस्थापित किया।
x महावीर का यह प्रगतिवादी सूत्र अधिक समय तक जिन्या नहीं रह सकता। शनैः शनैः वह काल कवलित होता गया । नारी का भी सरकार पूरी तरह संस्कारित नहीं हुमा था। इसलिए वह भी जैसे अपना अस्तित्व ही खो बैठी है।
इन्हीं सब स्थितियों को देखकर सन् 1975 में अन्तरराष्ट्रीय महिला वर्ष मनाया गया ताकि नारी वर्ग अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को पुनः प्राप्त कर सके। इसके बावजूद यदि हम जागृत नहीं, हो सके तो हो सकता है, हमें फिर पुराने रास्तों पर लौटना पड़े। पर अब यह लौटना सरस नही होगा । नारी वर्ग में महावीर की समानता का सूत्र पर कर रहा है । मब उसे पुनः उसी रूप में रखना सरल नहीं होगा।
पचकल्याणक प्रतिष्ठा, गजरथ महोत्सव मादि जैसे व्ययसाध्य मायोजन जैन धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के प्रमुख माध्यमों में अयमग्य माने जाने। इन माध्यमो से धामिक और सामाजिक मेतामों ने जन-जन के बीच जन प्रभावमा में पभिवद्धि की है और उसके वास्तविक तत्व को प्रस्तुत करने का सफल प्रयत्न किया है। जन मानस ने ऐसे उत्सवों को सराहा भी है । नारी यर्म के लिए भी ये उपयोगी सिवाए है। भले ही इसमें समान का पैसा पनपेक्षित रूप से पानी की पार
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हमारे संगाल का अधिकांस नारी वर्ष समरिक व में सभी बीमत पीछे है। उसके साम प्राचीन मिस्वास पोर किमानती परम्पसए सही मान विपकी हुई है। इन परम्परामों ने समाज के प्रस्थान में एकबाब पापा उत्सव की है। फलतः उसका अध्ययन, स्वाध्याय तथा ग्रहण शक्ति का विकास
मशिनर्वसमावएत समलिमर से