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अजय कुमार--- जैसलमेर राज्य के विक्रमपुर का धर्मात्मा जैन ११५५ ई० में, जिनपतिसूरि के मार्गदर्शन में निकाला था। [ कैच. ३९ ]
भगवचन
अनयचा
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१. अजितसिंह मेहता के भागिनेय, जो १८६२ ई० में मेवाड राज्य (उदयपुर) में सिविल जज थे। [टांक. ]
२. दे. अभयपाल, चन्द्रवाड़ का चौहान नरेश, ल. १३७१ ६० [प्रमुख. २४८ ]
१. मूलनन्दिसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण की पट्टावली में न०३८ पर उल्लिखित बाचार्य, जो रामकीर्ति के पश्चात् और नरचन्द्र के पूर्व उज्जयिनी पटट्पर हुए, समय ल. ८७८-९७ ई० । [शोषांक ४८ ]
२. काष्ठासंघ - माथुरगच्छ पुष्करमण की पट्टावली के १४वें आचार्य, विश्वचन्द्र के पश्चात तथा माधवचन्द्र के पूर्व हुए [शोषांक-४८]
३. अभयचन्द्र पंडित, जो किरिय मोनी भट्टारक के गुरु थे, और जिनका उल्लेख गंगनरेश भूतुग ( ९३८-५३ ई०) के शासन काल के, ९५२ ई० के शि.ले. में हुआ है। [मेजं. २०१] ४. अभयचन्द्र वादी, जिनका उल्लेख चालुक्य जयसिंह प्र. के समय के, १०३६ ई० के शि. ले. में, कालमुख- शेव संप्रदाय के पंचलिंग - मठाध्यक्ष लकुलिश पंडित की बादविजयों के प्रसंग
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ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
सेठ, जिसने ल.
तीर्थयात्रा संव
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में
हुआ है। [ मेजे. ४९-५०. २०२]
५. बडोह ( विदिशा, म. प्र. ) के जिनमंदिर के द्वार पर उत्कीर्ण, १०५७ ई० के शि.ले. में उल्लिखित अभयचन्द्र । [जोशिसं - v. ३८] ६. बेलवे के जैनगुरु, जो मूलसंधी मेषचन्द्र के शिष्य थे, और जिन्हें १०६२ ई० में होयसलनरेश विनयादित्य द्वि. ने भूदान दिया था। [ भाइ ३४१-२; प्रमुख, १३४; मेजं. ७५; जैशिसं. iv. १४५]
७. वह अभयचन्द्र, जिनकी गृहस्थ भाविका शिष्या पद्मावतीयक्का ने १०७८ ई० में उनके स्वर्गवासी होने पर उनके द्वारा बधूरे छोड़े जिनालय का निर्माण कार्य पूरा कराया था ।
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