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सप्पग
अपरारिप- कोंकण नरेश मल्लिकार्जुन का उत्तराधिकारी बैन नरेश, १९६२
ई० [गुच. २७२] या अय्यण, कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यवंश का नरेश, विक्रमादित्य के पश्चात और जमिह के पूर्व हुबा -शि. ले. १९३९ ई.
का है। [शिसं iii. ३१३; एक.vii. २३३] मप्या- रट्टनरेण कार्तवीर्य चतुर्थ का श्रीकरण पदाधिकारी, और उक्त
राणा एवं उसके उत्तराधिकारी मल्लिकार्जुन के मन्त्री तथा रट्टजिनालय के निर्माता बीचण का पिता, १२०४ ई. [जैशिसं iii.
४५३.४५४; iv. ३१८-३१९] मप्यनव्य- और दडनायक केसिमय्य तथा रेब्बिसेटि की प्रार्थना पर चालुक्य
त्रैलोक्यमहल के राज्य मे, १०६७ ई. में, नलगोण्डा की रानी ने कछ प्राचीन जिनमंदिरों के लिए भूमि दान की थी । जैशिसं
v.४०] पप्पणम्य रोय-ने चालुक्य जयसिंह द्वि के राज्य में १०७२ ई. मे मैसूर के
रायचर जिले के तलेखान स्थान में एक जिनमंदिर बनवाया था
जिसके लिये राज्य ने भूमि नादि दान की थी। [शिसं.v४५] अप्पया
दे. अय्यपार्य, नामान्तर अप्पय, अय्यप, आयप। अप्पर- काञ्ची के जिनधर्मी पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मन प्र (६००-३० ई.)
के समय के जैन मठ का मुनि धर्मसेन धर्मविरोधी होकर शैवसंत अप्पर के नाम से प्रसिद्ध हया-राजा को भी शेक बना लिया और दोनों ने जैनों पर भीषण अत्याचार किये। [भाइ. २४३;
प्रमुख. ८९; देसाई. ३३, ३५, ६३,८१] बप्युबराज- राष्ट्रकट कृष्ण तु. के जैन महासामन्ताधिपति शंकरगण्ड वि
(९६४ ई.) के पितामह का पितामह-पूरा वंश जन था ।
[देसाई. ३६८] अविनंबनमटार iii-दे, अभिनंदन भटार प्र. व हि । [देसाई.५९] अबुल फजल-मुगल सम्राट अकबर (१५५६-१६०५ ई.) का दरबारी, मन्त्री
और इतिहासकार, अकबरनामा तथा आइने-अकबरी का लेखक -अपनी 'आईन' में उसने जैनधर्म व उसके अनुयायियों का भी एक परिच्छेव में वर्णन किया है, कई तत्कालीन जैन विशिष्ट
ऐतिहासिक पक्तिकोष