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सेठिया विद्यालय बीकानेर में संस्कृत बोर प्राकृत का अध्य सन् १९२६ में बंगाल संस्कृत एसोसियेशन कलकता से जैनधर्म पर 'न्यायतोर्थ' परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् १९३० में स्यादवाद महाविद्यालय, वाराणसी और सन् १९३१ में बनारस विश्वविद्यालय के बोरियन्टल कालेज में प्रवेश लेकर वेदांत, संस्कृत और भारतीय दर्शन का सम्यक अध्ययन किया और सन् १९३७ में 'वेदान्ताचार्य' की परीक्षा प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की। सन् १९४०-४४ के दौरान सेठिया इन्स्टीट्यूट, बीकानेर में साहित्य एवं शोध के प्रधान के रूप में कार्य करते समय जैन आगम वीर नागमोत्तर साहित्य का सार प्रस्तुत करने वाले 'श्री जैन सिद्धांत बोम संग्रह' की आठ खण्डों में रचना की। सन् १९४३ में संस्कृत से प्रथम श्रेणी में एम. ए. किया । सन् १९४४-४८ में वैश्य कालेज, भिवानी में प्रबक्ता रहे। अक्तूबर १९४७ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी से शोध छात्रवृत्ति प्राप्त कर भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शनों का निरपेक्ष भाव से तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने वाला ७०० पृष्ठ का शोध प्रबन्ध लिखा जिस पर उन्हें डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई ree fruits में कार्य करते समय उन्होंने दाणंनिक जैन साहित्य का इतिहास भी लिखा और मासिक पत्र 'श्रमण' का शुभारम्भ किया। उनके निबन्ध 'भारतीय संस्कृति को दो धाराएं' ने बौद्धिक जगत में खलबली उत्पन्न की। सन् १९५३ में वह रामजस कालेज, दिल्ली में तथा सितम्बर १९५७ में दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए वहां जुलाई १९५९ में स्नातकोत्तर अध्ययन (सायंकालीन) संस्थान बनने पर उसके विभागाध्यक्ष बने, किन्तु वृष्टि चले जाने के कारण उन्हें शीघ्र ही उसे छोड़ना पड़ा और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अवकाश प्राप्त प्रोफेसरों के लिये योजना के अन्तर्गत कार्य किया । प्रमुख भारतीय पत्रपत्रिकाओं मे हिन्दी, संस्कृत और अग्रेजी में अनेक लेख और शोध-पत्र प्रकाशित करने के अतिरिक्त १२ ग्रयों के सुखक सन् १९५४-५८ में अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन के
ऐतिहासिक व्यक्तिको