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किया है। कल्याणकारक के कर्त्ता इन ग्रादित्याचार्य का समय लगभग ७९० से ८३० ई० के मध्य अनुमानित है। मुनीन्द्र, पण्डित, महागुरु आदि इनको उपाधियां थीं। [जैसो. २०४२०६; प्रमुख. ९४; मे. २६७ ]
उपाधित्व सुनिदिग., ल० १००० ई०, जमत्सुन्दरी, भिषक्प्रकाश, कनकatre, एवं रामविनोद नामक संस्कृत वैद्यक ग्रन्थों के रचयिता । उच्चारणाचार्य- ने कापड आगम की यतिवृषभाचार्य (ल० १३०-१८० ई०) कृतचूनियों पर बारह सहस्त्र श्लोक परिमाण वृतिसूत्र रचे थे, ल० २५० ई० में । [ पुर्जवासू. २०]
उजागरमल डिप्टी -- मेरठ (उ० प्र०) निवासी दिग० अग्रवाल, १९वीं शती ई० के उत्तरार्ध में डिप्टी कलेक्टर थे तथा अच्छे समाजसेवी थे-मेरठ शहर के बड़े दिग. जैन मंदिर के लिए भूमि आदि दिलाने तथा उसका निर्माण कराने में सहायक रहे थे, समाज के प्रमुखों में से थे। [ प्रमुख. ३५७ ] ११७० ई० में बिजोलिया पार्श्व जिनालय के प्रतिष्ठापक साहूलोलाक का अनुज । [जैशिसं. iv. २६५; प्रमुख. २०६ ]
उज्जवल
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उसतिका-
ल. १७७ ई० में, किसी कुषण महाराजा-राजातिराज (संभवतया · वासुदेव) के शासनकाल में, मथुरा के अर्हतायतन ( जिनमंदिर) में ओखारिका की पुत्री उसतिका ने श्राविका भगिनी (साध्वी ) ओला, शिरिक एवं शिवदिशा के सहयोग से भगवान महावीर की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी -नामों से उल्लिखित महिलाएं शक या पहलव जातीय विदेशी रही प्रतीत होती हैं । [ जैशिसं. जे. आर. ए. एस. १८९६ पृ. ५७८- ५८१ ]
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उधार मल्लिषेण
दिगम्बराचार्य, ल० ११०० ई० की कुलोत्तुंग चोल प्र० की प्रशस्ति में उल्लिखित । [ जैशिसं. iv. १७३ /
उडवार राजेद्र चोलदेब - अपरनाम कोपरकेसरिवर्तन के राज्य के १२वें वर्ष, १०२३ ई० में, तियमले ( पवित्र पर्वत) पर स्थित कुन्दव-जिना
लय के लिए दानादि दिये गये थे।
[जैशिसं . १७४;
साइइ. i. ६७ ]
उत्तमंदि अडिगल -- तमिल देश के तिकड़म्बुरई नामक स्थान में स्थित काट्टा
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
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