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मार्यप- दे. अय्यपार्य। मार्यपण्डित- मूलसंघ-सूरस्थगण-चित्रकटान्वय के कनकनन्दि भ. के प्रशिष्य,
उत्तरासंग १० के प्रशिष्य, अरुहन्दि भट्टारक के शिष्य, भार्यपण्डित को, चालुक्य सोमेश्वर हि के राज्यकाल में, १०७४ ई. में, राजषानी पोनगन्द की बरसर-बसदि नामक प्रमुख जिनालय के लिए प्रादेशिक पासक महामंडलेश्वर लकमरस ने भूमिदान
दिया था। [देसाई. १०७-१०८; शिस. iv. १५८] बाल- अज्जमंजु, आर्यमंग, आर्यमल पा आर्यमण एक पुरातन आचार्य,
जो कषायाभूत (पेज्जदोसपाहुब) रूप मूल श्रुतागम के उद्धार एवं पुस्तकीकरण से सम्बद्ध हैं। अनुश्रुति है कि गुणधराचार्य ने उक्त मागम का मूलसूत्रगाथाबो एवं विवरण गाथाओं में उद्धार एवं पुस्तकीकरण किया, जिसका उन्होंने आयमंक्षु तथा नागहस्ति को व्याख्यान किया, अथवा उन दोनों को वे सूत्रगाथाए गुरुपरम्परा से प्राप्त हुई, और उनके समीप यतिवृषभा. चार्य (२री शती ई.) ने उनका अध्ययन करके उन पर चूणि. सूत्रों की रचना की थी। आर्यमक्ष प्रथम शती ई. में हुए
प्रतीत होते हैं। [सो. १०७, १०९;प्रवी.. १२४] नारक्षित- श्वेताम्बराचार्य, ल० २री शती ई०, अनुयोगवार सूत्र के रच
यिता कहे जाते हैं। मार्वती- संभवतया ती. महावीर की जननी विशनादेवी, जिनकी मूर्ति
श्राविका आमोहिनी ने ई०पू० २४ में, मथुरा में प्रतिष्ठापित की थी । [प्रमुख. ६५-६६; जैशिसं. ii. ५; लूडर्स सूची
नं. ५९] मार्यधुमेन्यु- दिग. आचार्य, जिनके शिष्य विजयकोतिदेव के भक्त गृहस्थ
शिष्य कोंगाल्व नरेश ने १३९.६. में, अपनी धर्मात्मारानी सुगुणी देवी के साथ, मुल्लर के चन्द्रनाथ जिनालय का निर्माण
कराया तथा दान दिये थे। [मेजे. ३१३] बार्य सुहस्ति- सुहस्ति । मार्यसेन- १. मन्त्रीश्वर चामुण्डाराय (९८१ ६.) के गुरु अजितसेन के
गुरु। (देसाई. १३४, १३७, १३९] २. मूलसंध-सेनगण-पोगरिगच्छ के राजपूजित ब्रह्मसेन मुनिनाथ
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ऐतिहासिक व्यक्तिकोश