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बाविनाप
मूत्तिया बनवाकर स्थापित की थीं। इस कार्य में श्रुतगण के समस्त भव्य श्रावकों ने भी योग दिया था। [क्षिसं. ii. ५८४; भेजे. ३३०; एक.iv-१२३] १३६७ ई० में स्वर्गवासी होने वाले देवचन्द्र प्रतिप के शिष्य और श्रुतमुनि के प्रशिग्य आदिदेव भी यही प्रतीत होते हैं। [प्रमुख. २६२, २६३] १. प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का अपरनाम -दे. ऋषभदेव । २. प्रवचनपरीक्षाकार पं. नेमिचन्द्र (ल. १५.. ई.) के भ्राता जिन्हें भव्यानंद-काव्य (१५४२ ई.) में 'बुषस्तुत्य-बादविजयी-मल्लिरायनप-स्वान्त-सरोजात-प्रभाकर-दशरथतुल्यकरणिकतिलक (मन्त्री विशेष)' आदि विशेषणों के साथ स्मरण किया है-यह धर्मात्मा जैन ब्राह्मण श्रावक, विद्वान एवं राजपुरुष थे। [सं. १.१, १३५, १३७, १४८] ३. आदिनाथ पंडितदेव मलसंघ-तित्रिणिगच्छ के आचार्य थे। इनके एक तेलीजातिय कृषक श्रावक शिष्य ने १६९९ ई. में, नेल निकालने का एक पत्थर का कोल्हू बनवाकर देवमंदिर के लिए समर्पित किया था। [शिसं. ii. ७२४; एक. iii. ४८]
४. दिग. ब्राह्मण आदिनाथ. देवेन्द्र एवं मायंदेवी के पुत्र, और विजयप्प एवं संहिताकार नेमिचन्द्र के भाई- १६वीं शती। संभवतया न. २ से अभिन्न हैं। [टंक.] ५. दिग. ब्राह्मण आयुर्वेदश, पार्श्वनाथ के पुत्र, कोदण्डराम के पिना, और ब्रह्मदेव के पितामह । [टंक. ६. लक्ष्मेश्वर के १०५१ई.के शि. ले. में उल्लिखित दान के ममर्थक वैध कन्नप का एक पुत्र। [शिसं. iv. १६५] पम्प नामके प्रथम एवं सर्वमहान जैन कडकवि, वेंगिमंडल निवासी दिग. जिनधर्मी तेलेगु ब्राह्मण अभिरामदेवराय के पुत्र, जन्म ९०२६०, पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) के चालुक्य नरेश बरि. कसरी वि. के माश्रित, आदिपुराण और विक्रमार्जुनविषय (भारत) नामक दो सुप्रसिद्ध चम्पूकाव्यों के प्रणेता, (९४१ ई.
-संभवतया स्वर्गवाम की अथवा अन्य रचना की तिथि) अमर कवि। [मेज. २६५; ककच.; टंक.]
मारिप
एतिहासिक व्यक्तिकोष