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रचना की थी। उनके ये दोनों संस्कृत महाकाव्य उपलब्ध एवं प्रकाशित है - अन्य छः ग्रन्थ क्या थे और संस्कृत, कन्नड या तमिल, किस भाषा में रखे गये, यह अज्ञात है । विद्वत्समूह में प्रमुख, शब्द- समयार्णव-पारग यशस्वी नागनन्दि आचार्य के असग प्रमुख गृहस्थ शिष्य थे, इनके एक अन्य गुरु आर्यनन्दि थे । पोन (९५० ई०) आदि परवर्ती कन्नड कवियों ने असंग की प्रभूत प्रशंसा की है, ओर चन्द्रप्रभचरित्र (ल० ९५० ई०), गद्यचिन्तामण एवं धर्मशर्माभ्युदय (११वीं शती ई०) पर अलग का प्रभाव लक्षित है। उत्तरपुराण गुणभद्र (ल० ८५०-९० ई०) का अस ने कोई संकेत नहीं किया है। [जंसो. २२१; बी. . ७९ ] राष्ट्रकूट कृष्ण तृ० के यादववंशी जनसामन्त शंकरगण्ड वि. ( ९६४ ई०) का पिता उस वर्ष महासामन्ताषिपति शंकरगण्ड द्वि. ने कुपण तीथंपर जिनालय निर्माण कराके उसके लिए दान दिये थे । [ देसाई. ३६८ ]
कवि ने ल० १२५७ ई० में चन्दनबालारास की रचना की थी । [कास. १५४ ]
अन्यमित्रा - विदिशा की श्रेष्ठिकन्या, सम्राट अशोकमोयं की पत्नी, और राजकुमार कुणाल को जननी, सम्राट सम्प्रति की पितामही । [ प्रमुख. ४८ ]
ने १४१५ ई० में टोंक में पद्मनंदि के शिष्य आदेश से पार्श्वनाथ बिम्ब प्रतिष्ठा की थी। ग्वालियर के संघपति काला (१४४० ई०) का जैन सेठ । [प्रमुख. २५१]
असबम्बरसि— कदम्बनरेश एरेयंगदेव की धर्मात्मा रानी, जिसने १०९६ ई० में, एक भव्य जिनमन्दिर निर्माण कराकर उसके लिए देशीगण के रविन्द्र संद्धान्तदेव को दान दिया-दिलाया था। [जैशिसं. iv. १६९-१७० ]
असवर मारग्य-- होयसल नरेश बीर बल्लाल द्वि का प्रधानमन्त्री हिरिय-हेडेम असवरमारथ्य, जिसने १२०४ ई० में कुन्तलापुर के माचार्य नेमिचन्द्रभट्टारक के लिए शिलाशासन लिखवाकर दिया था । [जैणिसं. iii-४५० ]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
असगमरस-
असगु-
असपाल
असराज
विशालकीति के [कंच. ७५ ]
चचा, अग्रवाल
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