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________________ अनेक विशेष [५३ एक साथ प्रत्यक्ष होता है तब उन सबकी विशेषताएँ ध्यान में नहीं आती उन सबसे बना हुआ एक सामान्य पदार्थ ही ध्यान में आता है । जैसे हम एक मकान को देखते हैं तो ईंट चूना पत्थर लकड़ी का व्यवस्थित समूह रूप एक पदार्थ हमारे ध्यान में आता है । हां, दूसरे क्षणों में हम ईंट का अलग लकड़ी का अलग प्रत्यक्ष कर सकते हैं । पर ईंट का प्रत्यक्ष करते समय ईंट का प्रत्यक्ष होगा उसके कणों का नहीं, उनके लिये अलग प्रत्यक्ष चाहिये । इस प्रकार एक समय में प्रत्यक्ष का विषय जितना होगा उसमें किसी एक विशेष का ही ज्ञान होगा उसके भीतर की अनेक विशेषताओं के लिय दृसरे दूसरे समयों में अनेक प्रत्यक्ष करना पड़ेंगे । सेना वगैरह का ज्ञान भी इसी तरह का होता है । जब सेना का ज्ञान है तव सैनिकों की विशेषता का ज्ञान नहीं होता । केवल ज्ञान में अगर त्रिकाल त्रिलोक के समस्त पदार्थों का प्रत्यक्ष हो तो त्रिकाल त्रिलोक के समूहरूप किसी एक धर्म का प्रत्यक्ष होगा । सर्वव्यापक समानता सत्ता हे तो उसी का ज्ञान होगा अनंत पर्याय और अनंतद्रव्य न दिखेगे । यह भी एक छोटा सा कारण है जो एक समय में अनंत पर्यायों का प्रत्यक्ष नहीं होने देता। युक्त्याभासोंकी आलोचना सर्वज्ञत्व की उस मान्यता में जो ये तीन प्रकार की बाधाएँ उपस्थित की गई हैं वे पर्याप्त हैं । इसके बाद अगर इस विषय में और कुछ न कहा जाय तब भी इस मान्यता का खण्डन अच्छी
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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