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________________ सप्तभंगी । ७-यों तो अच्छी नहीं है, फिर भी कलसे कुछ अच्छा है, लेकिन कह नहीं सकते कि क्या हो [ अस्लि नास्ति अवक्तव्य ] . ये सातों ही उत्तर अपनी अपनी कुछ विशेषता रखते हैं और रोगी की अवस्था का विशेष परिचय देते हैं, इसलिये प्रत्येक भंग रोगी की अवस्था से सम्बन्ध रखता है। इसी तरह का एक उदाहरण दार्शनिक क्षेत्र का लीजिये। .. : १--परिमित पदार्थ ही जाने जा सकते हैं। २--अनन्त पदार्थ नहीं जाने जा सकते । ३--जिस पदार्थ का स्वयं या किरणादिक के द्वारा इन्द्रियों से सम्बन्ध होता है उसे जान सकते हैं, बाकी को नहीं जान सकते । अर्थात परिमित को जान सकते हैं, अपरिमित को नहीं जान सकते ४--प्रत्यक्ष ज्ञान की सीमा कहाँ है, कह नहीं सकते। . ५ परिमित पदार्थ ही जाने जा सकते हैं, परन्तु कितने जाने जा सकते हैं यह नहीं कह सकते। .. . ६--अनन्त पदार्थ नहीं जाने जा सकते यह निश्चित है, फिर भी कितने जाने जा सकते हैं यह नहीं कह सकते । ७ अनन्त तो नहीं जाने जा सकते, परिमित ही जाने जा सकते हैं, पर कितने ? यह नहीं कह सकते ।। . इस प्रकार और भी दार्शनिक प्रश्नों का सप्तभंगी के ढंगसे उत्तर देकर विषय को स्पष्ट किया जा सकता है। इसी प्रकार धार्मिक प्रश्नों के विषय में भी सप्तभंगी का उपयोग किया जा सकता है । प्रसिद्ध प्रश्न हिंसा ( द्रव्य हिंसा-प्राणियों को मारना )
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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