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________________ - अवधिज्ञान [३९३ गौतम-आनंद ! इतनी उच्च श्रेणी का अवधिज्ञान गृहस्थ को नहीं हो सकता, इसलिये तुम्हें अपने इस वक्तव्य की आलोचना करना चाहिये, प्रतिक्रमण करना चाहिये; अर्थात् अपने शब्द वापिस लेना चाहिये । . आनन्द-भगवन् ! क्या सच्ची बात की भी आलोचना की जाता है ? क्या सत्यवचन भी वापिस लिया जाता है ? गौतम-नहीं, असत्य की ही आलोचना की जाती है, वही वापिस लिया जाता है ? आनन्द-तब तो भगवन् , आप ही अपने शब्दों की आलोचना कीजिये, आप ही अपने शब्दोंको वापिस लीजिये । आनन्द के शब्द सुनकर गौतम सन्देह में पड़ गये। उन्हें बड़ी ग्लानि हुई । उनने जाकर महात्मा महावीर से सब बात कही और पृछा कि-भगवन् ! किसे अपने शब्द वापिस लेना चाहिये ! म. महावीर बोले-गौतम ! इसमें तुम्हारी ही भूल है। तुम अपने शब्द वापिस लो और जाकर आनन्दसे माफी मांगो । तब गौतम ने जाकर आनन्दसे माफ़ी माँगी और अपने शब्द वापिस लिये । __यह वर्णन अन्य दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। परन्तु यहां तो सिर्फ गौतम के ज्ञान की ही आलोचना करना है । गौतम चार ज्ञानधारी थे। उन्हें उच्च श्रेणीके अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त थे। फिर भी वे यह न समझ सके कि आनन्द सच कहता है या मिथ्या ? आनन्द के मन में क्या था, यह बात उन्हें मनः
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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