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________________ श्रुतज्ञान के भेद [३५३ थे, और वे रक्त मांस, पीप वगैरह का भोजन करते थे। रावण का भाई कुम्भकर्ण छ: महीने तक निरन्तर सोता था, भले ही हाथियों से उसका मर्दन कराओ या तेल के घड़ों से उसके कान भर दो । सामने बजते हुए बाजों को भी वह नहीं सुनता था, न छः महीने के पहिले उसकी नींद टूटती थी । उठ करके भूखसे व्याकुल हो कर साम्हने आये हुए हाथी मैंसे आदि को निगल जाता था। इस प्रकार देव, मनुष्य, हाथी आदि को खाकर वह फिर छः महीने के लिये सो जाता था । और भी सुनते हैं कि रावण ने इन्द्रको बेड़ियों से जकड़ा था और लंका नगरी में ले आया था। परन्तु जो इन्द्र जम्बूद्वीपको भी उठा सकता है, उस इन्द्रको इस तीन लोक में कौन जीत सकता है, जिसके पास ऐरावत सरीखा गजेन्द्र है, कभी व्यर्थ न जाने वाला जिस का वज्र है, जिसके चिन्तनमात्र से दूसरा भस्म हो सकता है ? यह तो ऐसी ही बात है जैस कोई कहे कि-मृगने शेर को मारडाला, कुत्तेने हाथी को परास्त कर दिया ! कवियों ने यह सब औंधी रामायण रचदी है । यह सब मिथ्या है, युक्ति से विरुद्ध है । पंडित 'लोग कभी इस पर विश्वास नहीं रखत। को जिगिऊण समत्थी इंद ससुरासुरे.वि तेलोके । जो सागरपेरन्तं जम्बूदावं समुद्धरइ । ११४ । एरावणो गइंदो जस्स य वज्जं अमोहपहरत्थं । तस्स किर चिंतिएण वि अन्नो बि मवेज्ज मसिरासी । ११५ । सीहो मयेण निहओ साणेण य कुंजरी जहा मम्गो । तह विवशेषः पयत्थं कईहि रामायणं रइयं । १४६ । अलियंपि सव्वमेय उववत्ति विरुद्ध पच्चय गुणेहि । न य सद्दहन्ति पुरिसा हवंति जे पंडिया लोए । १.७१
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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