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________________ श्रुतज्ञान के भेद कल्पित भी हैं । समवायांग [१] में णायवम्मकहा का परिचय देते हुए कहा है कि 'इन अध्ययनों में आयी हुई कथाएँ चरित [ घटित सत्य ] भी हैं और कल्पित भी । इसलिये इन्हें इतिहास समझना भूल है। वास्तव में ये अनुयोग हैं- ये धर्मशास्त्र हैं। अधिकांश कथाएँ कल्पित और अर्धकल्पित हैं। जैन कथासाहित्य में या अन्य कथासाहित्य में अगर इतिहास का बीज मिलता हो तो स्वतन्त्रता से उसकी परीक्षा करके ग्रहण करना चाहिये; बाको इन कथाओं को कथा ही समझना चाहिये, न कि इतिहास । इस बात के विस्तृत विवेचन के पहिले इसके भेदों का वर्णन करना उचित है । दिगम्बर ग्रन्थों में प्रथमानुयोग के भेद नहीं किये गये हैं, किन्तु श्वेताम्बर [२] ग्रन्थों में इसके दो भेद किये गये हैं । मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग । मूल प्रथमानुयोग में तीर्थकर और उनके सहयोगी परिवार का विस्तृत वर्णन है । और गण्डिकानुयोग में एक सरीखे चरित्रवाले या अन्य किसी तरह से समानता रखने वाले लोगों की कथाएं हैं । जैसे-जिसमें कुलकरों की कथा है वह कुलकर गण्डिका, जिसमें तीर्थंकरों की कथा है वह तीर्थंकर गण्डिका इसी प्रकार चक्रिवर्ति गण्डिका, दसार गण्डिका, बलदेवंगण्डिका वासुदेव गंडिका, गणधर गंडिका, भद्रबाहु गंडिका, तपः कर्मगंडिका, हरिवंशगण्डिका आदि। (१)... एगुणवीसं अज्झयणा ते समासओ दुविहा पण्णता । तं जहाचरिता कप्पिया य । (२) अशुनोंगे दुविहे पण्णते, तं जहा मूल पढमाणाओगे गंडिआणुओगेय ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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