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________________ श्रुतज्ञान के भेद [३३९ छिनच्छेदनय (१) इस व्याख्या के अनुसार सूत्रों की अलग अलग व्याख्या की जाती है। एक पद का दूसरे पदके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रक्खा जाता। यह व्याख्या जैन परम्परा में चालू अच्छिन्नच्छेदनय (२) इस व्याख्या के अनुसार सूत्रों का . अर्थ आगे पीछे के श्लोकों के साथ मिलाकर किया जाता है । मतलब यह है कि यह सापेक्ष व्याख्या है। यह व्याख्या ' आजीवक मत के सूत्र के अनुसार अथवा उसके लिये है। त्रिकनय (३) आजीवक मत की नयव्यवस्था के अनुसार जब इन सूत्रों की व्याख्या की जाती हैं तब वह त्रिकनयिक कहलाती है। () यो नाम नयः सूत्रं देन निमेवाभिप्रेति न द्वितीयेन सूत्रण सह सम्बन्धमति ।... .. तथासूत्राण्यपि यन्नयाभिप्रायेण परस्परं निरपेक्षाणि व्याख्यान्तिस्म स दिन दे नयः । मानो द्विधाकृतः भेदः पर्यन्तो यन सनिय दः...| इस्यतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि स्वसमय सूत्रपरिपाट्या स्त्रसमयवक्तव्यतामधिकृत्य सूत्र परिपाट्यां विवक्षितायां छिन्न देनायिकानि । नन्दी टीका ५६ । (1) इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि आजीविका सूत्रपरिपाट्या गोशालाप्रवर्शिताजीविक पाखण्डिमतेन सूत्र परिपाट्यां विवक्षितायामच्छिन्नउछेद नयिकानि । इयमत्र भावना-असिन्नरोदनयो नाम यः सूशं सूशान्तरेण सहाधिनमर्थतः सम्बद्धममिति : (३) इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि त्रैराशिक सूत्रपरिपाट्यां पैराशिक नयमतेन त्र परिपाट्या विवक्षितायो त्रिकनयिकानि । नन्दी टीका ५६
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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