SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रुतज्ञान के भेद [ ३२९ गोम्मटसारके टीकाकार इसकी व्याख्या दो तरह १ से करते हैं | प्रथमके अनुसार इसमें फलित ज्योतिष या सामुद्रिकका वर्णन है । इसमें तीनकालके धनधान्य लाभअलाभ सुखदुःख जीवनमरण जयपराजयका खुलासा किया जाता है । दूसरी व्याख्योक अनुसार शिष्य के प्रश्न के अनुसार आक्षेपणी विक्षेपणी संवेजनी निर्वेजनी चची है। जिनमें परमतकी आशंकारहित चारों अनुयोगों का वर्णन हो वह आक्षेपणी, जिसमें प्रमाणनयात्मक युक्तियों के बलसे सर्वथैकान्तवादों का निराकरण हो वह विक्षेपणी, तीर्थंकरादिका ऐश्वर्य बतलाते हुए धर्मका फल बताया जाय वह संवेजनी, पापों का फल बताकर वैराग्यरूप कथन जिसमें हो वह निर्वेजनी | - इसप्रकार दोनों सम्प्रदायोंमें दो दो तरह की व्याख्या पाईजाती है । इससे यह बात मालूम होती है कि मूलमें इस अंगका विषय कितना किस ढंगसे क्या था, यह ठीक ठीक किसी आचार्यको नहीं 1 ---- (१) प्रश्नस्य - दूतवाक्यनष्टमुष्टिी चतादिरूपस्य अर्थः त्रिकालगोचरोधनधान्यादि लाभालाभसुखदुःख जीवितमरण जयपराजयादिरूपो व्याकियते व्याख्यायते यस्मिंस्तत्प्रश्नव्याकरणं । अथवा शिष्यप्रश्नानुरूपतया अवक्षेपणी विक्षपणा संवेजनी निवेजनी चीतकथा चतुर्विधा । तत्र प्रथमानुयोगकरणानुयोग चरणानुयोगद्रव्यानुयोग रूपपरम गमपदार्थानां तीर्थंकरादिवृत्तान्त लोकसंस्थान देशसकलमति धर्मपश्चास्तिकायादीनां परमताशंकारहितम् कथनमाक्षेपणी कथा । प्रमाणनयात्मक युक्तियुक्त हेतुत्वादिबलेन सर्वर्थकान्तादि परसमयार्यनिराकरणरूपा 'विक्षेपण कथा : रत्नत्रयात्मकधर्मानुष्ठान फलभूत तीर्थंकर श्वर्य भाव तेजोवार्य ज्ञानसुखादि वर्णनारूपा संवेजनी कथा | संसारशरीर भोगरागजनित दुष्कर्मफलनारकादिदुःख दुष्कुल विरूपांग दारिद्रयापमानदुःखादिवर्णनाद्वारेण वैराग्यकथनरूपा निर्वेजनी कथा एवंविधाः कथाः व्याक्रियन्तं व्याख्यायन्ते यस्मिंस्तत्प्रश्न व्याकरणं नाम दशममंगम् । गोम्मटसार जविकाण्ड टीका ३५७
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy