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________________ ३२६ ] पाँचवाँ अध्याय कथनानुसार तीर्थकरों [१] का भी वर्णन इस अंग में होना चाहिये । इस समय में तो इस अंग में बहुत थोड़े मोक्षगामियों के चरित्र हैं । वास्तव में इसका कलेवर और विशाल होना चाहिये । अथवा हस की कोई दूसरी कसौटी होना चाहिये जिसके अनुसार इन चरित्रों का चुनाव किया गया हो । एक विशेष बात यह भी है। इसमें निम्न लिखित स्त्रियों के चरित्र भी पाये जाते हैं जिनने उसी जन्म में [ स्त्रीपर्याय से ] मोक्ष पाया है। १ पद्मावती, २ गौरी, ३ गांधारी, ४ लक्ष्मणा, ५ सुसीमा, ६ जांबवती, ७ सत्यभामा, ८ रुक्मिणी, ९ मूलश्री, १० मूलदत्ता, ११ नंदा, १२ नंदवती, १३ नंदोत्तरा, १४ नंदिसेनिका, १५ मरुता, १६ सुमरुता, १७ महामरुता, १८ मरुदेवा, १९ भद्रा, २० सुभद्रा, २१ सुजाता, २२ सुमना, २३ भूतदत्ता । २४ काली २५ सुकाली, २६ महाकाली, २७ कृष्णा, २८ सुकृष्णा, २९ महाकृष्णा, ३० वीर कृष्णा, ३१ रामकृष्णा, ३२ पितृसेन कृष्णा, ३३ महासेन कृष्णा । परन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेक महिलाओं के नाम रह गये हैं जिनने मोक्ष पाया है । ९ अनुचरोपपादिक दशा - आठवें अंग में मोक्षगामियों के चरित्र हैं और इस अंगमें अनुत्तर विमान में पैदा होने वाले मुनियों (१) अन्तो विनाशः कर्मणः तत्फलभूतस्य वा संसारस्य ये कृतवन्तस्तेऽ न्तकृतः । तीर्थंकरादयस्तद्वक्तव्यता प्रतिबद्धाः दशा-अध्ययनानि अन्तकृद्दशाः । 'नन्दीसून मलयगिरिवृत्तिः सूत्र ५२ ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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