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________________ ३२४ } पाचवा अध्यायलक्ष्यबाह्य कहकर टाली जा सकती है, या लोकाचार की दुहाई देकर उड़ाई जा सकती है । परन्तु अगर यही कथा 'उपासक दशा' में हो तो वहां वह मुख्य बात बन जायगी, क्योंकि यह अंग उपासों के आचार का परिचय देने के लिये है। ___ कुछ भी हो, परन्तु यह बात निश्चित है कि 'उपासक दशा' में उपासिकाओं के अध्ययनों की आवश्यकता है और सम्भवतः पहिले इस अंग में उपासिकाओं के अध्ययन भी होंगे। पीछे किसी कारण से ये अध्ययन नष्ट कर गये दिये या नष्ट हो गये । . ८ अंतकृद्दशा-इस अंगमें मुक्तिगामियों की दशा का वर्णन है। दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार इसमें सिर्फ उन मुनियों का ही वर्णन है जिनने दारुण उपसर्गों को सहकर मोक्ष प्राप्त (१) किया है । इस प्रकार के दस मुनि श्रीवर्धमानके तीर्थ में हुए थे । इसी प्रकार के दस दस मुनि अन्य तीर्थंकरों के तीर्थ में भी हुए थे, उनका इसमें वर्णन है । परन्तु हरएक तीर्थकर के तीर्थ में दस दस मुनियों के होने का नियम बनाना वर्णन को अस्वाभाविक और अविश्वसनीय बना देना है । हां, अगर यह कहा जाय कि हरएक तीर्थ में उपसर्ग, सहिष्णु मुनियों की संख्या तो बहुत अधिक है, परन्तु उन में से दस दस- मुवि चुन लिये गये हैं तो किसी तरह यह बात कुछ (१) संसोरस्व अंतः कतो यैस्तेऽन्तकृतः नमि मतंग सोमिल.. ... .... दश वर्धमान तीर्थकरतीथें । एवमृषमादीना त्रयोविंशतेस्तीथेषु अन्येऽन्येव दशदशानगारा दारुणानुपसर्गान्निर्जित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृतः दस अस्या वयेते इति अंतकद्दश्च । त. रा. १-२०.१२
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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