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अनन्त का प्रत्यक्ष असम्भव
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काल की दृष्टिसे पूर्ण रूपमें जान लिया जाय तो वस्तु का अन्त आजायगा, वस्तु नष्ट होजायगी । परन्तु किसी सत् वस्तुका विनाश नहीं हो सकता उसका सिर्फ परिवर्तन होता है । वस्तुकी सीमा मानना या केवलज्ञान के विषय प्रकाशन की सीमा मानना इन दोमेंसे किसी एक का चुनाव करना पड़ेगा ।
अवस्थाएँ क्रमवर्ती होती हैं । एक समय में एक की दो अवस्थाएँ नहीं होतीं । इसलिये एक की सब अवस्थाओं के प्रत्यक्ष करलेने पर उनमें से कोई ऐसी अवस्था अवश्य होना चाहिये जो सबसे अंतिम है । अगर सबसे अंतिम कोई अवस्था नहीं झलकी तो पूरी वस्तुका प्रत्यक्ष कैसे हुआ ? अगर सबसे अंतिम अवस्था झलकी तो इसका अर्थ हुआ कि इसके बाद कोई अवस्था नहीं है । और बिना अवस्था के बिना पर्याय के वस्तु रह नहीं सकती इसलिये वस्तुका नाश मानना पड़ा जो कि असम्भव है ।
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जैन सिद्धान्त, अन्यदर्शन, वैज्ञानिक लोग और हमारा अनुभव, ये सब इस बातके साक्षी हैं कि वस्तु का नाश नहीं होता अवस्था का परिवर्तन होता है । इसलिये एक प्रत्यक्ष के द्वारा अनन्त पर्यायों को जान लेना असम्भव है । इसलिये केवलज्ञान की उपर्युक्त परिभाषा मिथ्या है ।
प्रश्न- अगर वस्तु अनन्त है तो केवलज्ञान वस्तुको अनन्त रूपमें जानेगा |
उत्तर - अनन्त रूपमें जानना अर्थात् अन्त नहीं पा सकना, यह तो केवलज्ञान के उपर्युक्त अर्थ का खण्डन हुआ । यों तो वस्तु को