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________________ महावीर और गोशाल [ १८३ के योग्य कर्म करता हो अर्थात् जिसके विषय में लोग यह कल्पना करें कि यह मरकर देवगति में जायगा वह भव्यद्रव्यदेव है । राजा आदि श्रेष्ठ पुरुष नरदेव हैं । साधु लोग धर्मदेव हैं । अरहंत देवाधिदेव हैं, और स्वर्ग आदि के देव भावदेव हैं। गोशालक अपने को देवाधिदेव मानता है इसलिये वहाँ प्रारम्भ के तीन देव ही लेना चाहिये । नरलोक में देवताओं का जहाँ भी वर्णन आता हो यहाँ भावदेव को छोड़कर बाकी देव लेना चाहिये । ( ४ ) गोशालक के आक्रमणकारी विचार मं. महावीरको केवलज्ञानसे नहीं, किन्तु आनन्द मुनिसे मालूम होते हैं, इसके बाद गौतम आदिको चुप रहनेका सन्देश भेजते हैं । केवलज्ञान से यदि यह बात जानी जासकती तो म. महावीरने गौतम आदिको महीनों पहिले ही यह सूचना दी होती और सर्वानुभूति और सुनक्षत्रका तो सख्त आज्ञा दी जाती कि वे बिलकुल चुप रहें, अथवा वे बाहर भेज दिये जाते जिससे वे मरने से बच जाते । यदि कहा जाय कि उनका भवितव्य ऐसा ही था तब तो महात्मा महावीर को बिलकुल चुप रहना चाहिये था । गौतम आदिको चुप रहनेका सन्देश भी क्यों भेजा ! ( ५ ) श्रास्तीके लोग कहते हैं कि कोष्ठक चैत्य में ( इससे देवनिर्मित समवशरणका भी अभाव सिद्ध होता है ) दो जिन आपस में लड़ते हैं । लोग दोनों को ही जिन समझते हैं । क्या उन्हें मालूम नहीं कि महात्मा महावीर तो त्रिकालत्रिलोककी बातें बताते हैं जब कि गोशालक नहीं बता पाता । इससे भी मालूम होता है कि केवलज्ञान उच्चतम श्रेणीका आत्मज्ञान है जिसे साधारण
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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