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________________ १७६ ] चौथा अध्याय चाहिये था जिससे उसका त्रिकालत्रिलोकका अज्ञान मालूम होता । नित्यानित्य आदिके प्रश्नतो तत्वज्ञताकी परीक्षा कर सकते हैं । इससे मालूम होता है उससमय तत्वज्ञता ही सर्वज्ञता समझी जाती थी । इस वार्तालाप से यह भी मालूम होता है कि सर्वज्ञ मशीन की तरह अनिच्छापूर्वक नहीं बोलता । अन्यथा जमालि के ऊपर गौतमके द्वारा ऐसे आक्षपभी किये गये होते कि तू इच्छापूर्वक बोलता है, इसलिये केवली नहीं है आदि । तत्वज्ञही सर्वज्ञ है और तत्वज्ञताका बीज स्याद्वाद है इसलिये गौतम जमालिसे स्याद्वाद सम्बन्धी प्रश्न किया | आचार्य समन्तभद्र मी इसविषयकी साक्षी देते हैं “ भगवन् ! 'सारा जगत् प्रतिसमय उत्पादव्ययत्रीव्ययुक्त है। इस प्रकार का आपका बचनही सर्वज्ञता का १ चिह्न हैं I जिसप्रकार किसी कक्षाके प्रश्नपत्रको देखकर यह अन्दाज लगाया जासकता है कि इस कक्षा का कोर्स क्या है इसीप्रकार गौतमके द्वारा ली गई जमालिकी परीक्षासे सर्वज्ञत्व के कोर्स का अन्दाज़ा लगता है । जिस समय जमालि हारगया किन्तु जब उसने अपना आग्रह न छोड़ा तत्र संघने उसे बाहर कर दिया | महावीर की पुत्री प्रियदर्शना भी साध्वीसंघ में थी । उनने देखाकि महावीरका पक्ष ठीक नहीं है माल का पक्ष ठीक है तो उनने जमालिको ही जिन (१) स्थितिजनननिरोधलक्षणं चरमचरं च जगत्प्रानक्षणम् । इति जिन सक्लानं वचनमिदं वदतां वरस्य ते I वृहत् स्वयम्भू ११४
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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