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________________ वास्तविक अर्थका समर्थन [ १५३ विषयों के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती । इसलिये धर्म के सर्वज्ञ का प्रचार अधिक हुआ और बाकी सर्वज्ञ प्रचलित न हो सके। इन चारों में तीसरा उत्तर मुख्य है । धर्म केवल पोथियों की चीज़ नहीं है, किन्तु उसका प्रभाव जीवन के सभी अंशोंपर पड़ता है । सुख के साथ साक्षात् सम्बन्ध स्थापित करनेवाला भी धर्म ही है । अगर धर्म न हो तो जगत् की सब विद्याएँ मिलकर भी मनुष्य को उतना सुखी नहीं कर सकती जितना कि किसी भी विद्यासे रहित होकर केवल धर्म कर सकता है । प्रत्येक युगकी महान् और जटिल समस्याएँ धर्म से ही हल होतीं हैं, भले ही उनका रूप राजनैतिक हो या आर्थिक हो, परन्तु जबतक धर्म नहीं आता तबतक वे समस्याएँ ज्यों की त्यों खड़ीं रहतीं हैं, तथा धर्म ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरूप में उन्हें हल करता है । यही कारण है कि धार्मिक क्षेत्र के सर्वज्ञ का स्थान सर्वोच्च, सर्वव्यापक और दीर्घकालस्थायी होता है । वास्तविक अर्थ का समर्थन | सर्वज्ञता वास्तव में क्या है, यह बात पाठक समझ गये होंगे। उस अर्थ के समर्थन में शास्त्र, विशेषतः जैन --शास्त्र कितनी साक्षी देते हैं यहाँ उसी बात का विचार करना है । प्रायः मुक्तिवादी सभी भारतीय दर्शनों ने उस महत्त्व दिया है जिससे आत्मा संसार के बन्धन से ज्ञानको बहुत अलग, केवल ज्ञानको केवल । ( बन्ध-रहित - अकेला ) होता है ज्ञान और उस अवस्था को कैवल्य उस अवस्था के कहते हैं । केवलज्ञान वास्तव में
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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