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________________ सर्वज्ञ शब्दका अर्थ [१५१ अपके मनकी बात जानता है और उसका कुछ उपाय मी निकाल सकता है। इससे पाठक समझ गये होंगे कि 'सर्वज्ञ' शब्द का अर्थ इच्छित पदार्थ का जानना है | और जो जिसका समाधान कर दे, उमके लिये वही सर्वज्ञ त्रिकाल-त्रिलोकज्ञ है । प्रश्न--एक मनुष्य जिसे सर्वज्ञ कहे उस सर्वज्ञ का अर्थ भले हा उपर्युक्त रीति से हो किन्तु जिसे सब लोग सर्वज्ञ कहते हैं वह सर्वज्ञ एसा नहीं हो सकता । उत्तर--ऐसा मनुष्य आज तक नहीं हुआ जिसे सभी सर्वज्ञ कहते हो । उसके अनुयायी उसे भले ही सर्वज्ञ कहते रहे हो परन्तु दूसरे तो उसे न केवल अर्वज्ञ, किन्तु मिथ्याज्ञानी तक कहते रहे हैं कदाचित् कोई ऐसा मनुष्य भी निकल आवे तो भी सर्वज्ञता का उपर्युक्त अर्थ उसमें भी लागू होगा । जो मनुष्य एक मनुष्य का समाधान कर सकता है वह एक मनुष्य के लिये सर्वज्ञ हो जाता है; जो दस मनुष्यों का समाधान कर सकता है वह दस मनुष्यों के लिये सर्वज्ञ हो जाता है । इसी प्रकार हज़ार लाख आदि की बात है । जो एक समाज का समाधान करे वह उस समाज का, देश का या उस युग का सर्वज्ञ होता है । मतलब यह कि सर्वज्ञ होने के लिये अनंत पदार्थों के ज्ञान की आवश्यकता नहीं है किन्तु किसी समाज, देश या युग की मुख्य समस्याओं को इतना सुलझा देने की आवश्यकता है जितने में लोगों को संतोष हो जावे । ऐसा महापुरुप ही समष्टि के द्वारा सर्वज्ञ कहा जाने लगता है।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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