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________________ केवली के अन्य ज्ञान [ १३९ कोई मनुष्य जो कि जीवन भर भोजन करता रहा है किन्तु विशेष ज्ञानी हो जाने से देशदेशान्तरों में विहार करता हुआ व्याख्यान आदि करता हुआ वर्षों और युगों तक भोजन न करे, इस बात पर अश्रद्धालुओं के सिवाय और कोई विश्वास नहीं कर सकता । प्रश्न -- केवली के कवलाहार न होने पर भी नोकमहार सदा होता रहता है इसलिये उनकी शरीर की स्थिति ठीक बनी रहती है । नोकर्माहार के कारण भोजन करने की ज़रूरत ही नहीं रहती । उत्तर - नोकर्मीहार केवली के ही नहीं होता, हमें तुम्हें भी प्रतिसमय होता रहता है फिर भी हमें भोजन करने की आवश्यकता रहती ही है । इतना ही नहीं, जो आदमी केवली बन गया है उसके भी केवलज्ञान होने के पहले नोकर्माहार होता था फिर भी उसे भोजन करने की आवश्यकता रहती थी । केवलज्ञान हो जाने पर वह आवश्यकता कैसे नष्ट हो सकती है ? इसलिये नोकर्मीहार रहने पर भी केवली को भोजन स्वीकार करना पड़ेगा जैसा कि सचाई के लिहाज से श्वेताम्बर जैनों को स्वीकार करना पड़ा है । केवलज्ञान के इस कल्पित रूप की रक्षा के लिये भगवान के निद्रा का अभाव मानना पड़ा है और निद्रा को दर्शनावरण का कार्य कहना पड़ा है जब कि ये दोनों बातें अविश्वसनीय और तर्कविरुद्ध हैं । केवल को अगर निद्रा मानी जायगी तो निद्रावस्था में केवलज्ञान का उपयोग न बन सकेगा । इसलिये भक्त लोगों ने यह मानलिया कि भगवान निद्रा ही नहीं लेते। निद्रा तो शरीर का
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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