________________
६२
4
की पूजा किया करे। किन्तु वह पूजा ऐसी है जो बिना कि प्रकारके जलचंदनादि द्रव्य के आडम्बर के एक गरीब से. safe के द्वारा भी, जितना सा उसे अवकाश मिलसके उत डी से समय में, आसानी से की जासकती है। अतः लेखक का उद्देश्य पूजा का विरोध करने का नहीं प्रत्युत वर्तमान ॐ समाज की प्रचलित पूजा-पद्धति में घुसी हुई बुराइयों दिग्दर्शन करने
त
है उन पर आप लोग भी यदि पक्षपात गर विचार करेंगे । को भी विश्वास होजावेग
की पूजा के लिए द्रव्यादि आडम्बर बिलकुल
.
"
कि
वश्यक
affe यह लेख वर्तमान जैन समाज को लक्ष्य क लिखा गया है तथापि उसकी लेखन शैली इस ढंग की र गई है कि अन्य धर्मावलंबी भाई भी पूजा मिद्धान्त को समझ इससे लाभ उठा सकें तथा जैनियां की मूर्तिपूजा विषयक उनमें हम फैली हुई है वह दूर होजावे ।
समाज हितैषी विद्वानों को चाहिये कि समय मे अपनी मौत को भंग करके समाज का वासना विषयक दूर करने के लिए जी जान से प्रथमशाल हो जाओ ।
फोटा, ११-२००६ ई०
भा