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________________ के विसर्जन , आवाहन आदि की पूजाओं के कोई प्राचीन ग्रंथ नहीं हैं और हिन्दुओं के यहाँ वेदों नक में आवाहन और बिमर्जन पाया जाता है । हिन्दु इस बात को मानते हैं कि देवना बुलाने में आने, बैठते और चढ़ाया हुआ द्रव्य ग्रहण करकं, विदा करने पर, वापस चले जाते हैं और उनके प्राचीन धर्मशास्त्र वेदादि में ऐमी पूजा भरीपड़ी हैं किन्तु हमारे धार्मिक उसूलों से ये बात कतई मेल नहीं खातीं । वास्तव में बात यह है कि उस समय के जैनियों को, हिन्दू धर्म के प्रभाव मे प्रवकर, यह पूजा का ढंग भी ग्रहण करना पड़ा था और उस ममय के प्राचार्यों ने , लोगों का धार्मिक विश्वास न डिगने पावे इस गरज मे उसी को 'द्रव्य पूजा नाम ददिया । अस्तु आप समझ गये होंगे कि जिसका वर्णन पहिले किया जा चुका है वह द्रव्य पूजा ही, प्राचीन प्राचार्यों की बनाई हुई द्रव्य पूजा है, जल चंदनादि से होनेवाली नहीं । बहुधा हमारे जैनी भाई नैवेद्यादि चढाने की पुष्टि में एक और उदाहरण दिया करते हैं । वे कहते हैं- “जिसप्रकार किसी राजा के सामने जाते समय हम , हमारे हदयों में उसके प्रति श्रादर होने से ,उसकी भेंट के लिये कोई न कोई वस्तु अवश्य लेजाते हैं उसीप्रकार जिनेन्द्र देव जो देवों के भी देव और राजाओं के भी राजा हैं,
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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