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जैन धर्म और मूर्ति पूजा
~.. अथांत । उपासना रहस्य,
लखक-~___ श्रीयुन विरालालजी सती, काल
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माक्षसुग्व-चैत्य-दान-परिपूजनाद्यामिकाः क्रिया बहुविधासुभृन्मरणपाडनाहनवः । न्वया ज्वलितकेवलेन नहि दशिताः किंतुता. मयि प्रमतभाक्तभिः त्रयमनुष्ठिताः श्रावकः ।।
-पात्रकार मात्र ।
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प्रकाशकसामनन्द जैन, कारा
"प्रथम बार दिसम्बर सन् १६२०० मुल्य ) १० वीरनि संबन २४५१ प्रति ०१
* हिमनाथ प्रम कोटा,*