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अर्हन सर्वत्र मदा विद्यमान नहीं रहने इमलिय परमात्मा के गुणों की स्मृति दिलाने के लिये उनकी अर्हन अवस्था की मनिया बनाई जाती है। वे मूर्तियां उनके वीतगगना, ध्यान मुद्रा में और शानना श्रादि गुणों का प्रतिबिम्ब होती हैं और उसी रहश्य को पूर्ण करना हैं । गमी मृतियों को कवाल पत्थर की बनाकर जो उनकी निंदा करते हैं व लोग वास्तव में जैनधर्म के नन्वा में पागचन नहीं हैं। जिस प्रकार किस कमरे में लगे हुगे, महान पुरुषों के चित्रों को देखकर उस कमरे में बैठने वाला के भन भी, (यदि व उनका जानन हैं और उनके गुणों को श्रादर की दृष्टि मे दखते हैं ) समय • पर जब २ भी _* ध्यान के समय शरीर की स्थिति कैसी होनी चाहिये. इसके लिये शासन का विधान कियागया है। जबतक श्रासन मज़बूत न होगा तवनक मनभी ध्यान में स्थिर नरहमकंगा श्रासन की दृढ़ता सं गरमी, सरदा वर्षा, डांस, मच्छर श्रादि की तरह २ की पीड़ा होनेपर भी मन चलायमान नहीं होता। ध्यान कग्न क वामन बहुनसे है जिनमें पद्मासन बहुत मुगम है। जैनियों के मन्दिरों में जो पद्मासन मूर्तियाँ होती हैं उन्हें देखकर हम जान सकते हैं कि इस श्रासन को किस प्रकार लगाना चाहिये इम श्रासन में शरीर को बिलकुल सीधा रखामा चाहिये और किसीभी अंग को तनाहुया न रखकर सम्र्पूण शरीर को बिलकुल शिथिल कर देना चाहिये।