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सर्व प्रकार के विकल्प भra face ध्याता और ध्येय दोनों
एकही रूप होजाते हैं ।
इससे प्रकट हैं कि तोकी उपासनाका मूल उद्देश्य केवल यही हैं कि आत्माकी जिन स्वाभाविक शक्तियों को उन्होंने विकसित कर लिया है वे ही हम भी पूर्णरूपसे विकासको प्राप्तहोजावें तत्वार्थ सूत्र में कहा भी है:- मोक्षमार्गस्यनेतारं मेनारकर्मभूभृतां ज्ञातारं-विश्वत्वानां वंदे तद्गुण लब्धये- अर्थात मोक्षमार्ग के नेता, कर्म रूपी पर्वतों के तोड़ने वाले और संसार के तत्वों के जानने वाले अहेत की, उनके गुणोंकी प्राप्ति के लिये, वंदना करता है ।
यद्यपि प्रकार की उपासना के द्वारा आत्मिक शक्तियों का विकास होजाने से परिणाम: रूपसे लौकिक प्रयोजनों की भी सिद्धि होती अवश्य है किन्तु यह बात ध्यान में रखलीजिये कि जो लोग लौकिक प्रयोजनों की पूर्ति केलिये, सांसारिक इच्छात्रों को पूर्ण करने की गरज से, श्रहंतों की पूजाभक्ति करते हैं. तथा तरह २ के प्रण और सौगन्ध लेते हैं, केसरियानाथजी, महावीरजी, शिखरजी, गिरनारजी आदिकी बोलारियां बोलते हैं और उनको श्राशा दिलाते हैं कि हमारे अमुक कार्य की सिद्धि हो जाने पर हम आपके दर्शन करने आयेंगे और छत्र चामरादि सुन्दर २ उपकरण चढ़ावेंगे: जो बीमारी और आईहुई दूसरी