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वीतरागी ही पूज्य है णमोकार मंत्र जैसा मन्त्र नहीं
वीतरागी जैसे देव नहीं
निर्ग्रन्थ जैसे गुरु नहीं
अहिंसा जैसा धर्म नहीं
आत्मध्यान जैसा ध्यान नहीं
वीतराग ही धर्म है
मिथ्यात्व का वमन
सम्यक्त्व उत्पन्न
कषायों का शमन
इन्द्रियों का दमन
आत्मा में रमण