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2. जो धन आहार में लगाया है वह न्यायनीति से कमाया हुआ हो ।
3. अन्न- गेहूँ, दाल, चावल, मसाले नमक, जीरा, धनिया, मिर्च (हल्दी नहीं) मेवा - बादाम,
किशमिश, मुनक्का आदि, सभी मर्यादित एवं संशोधित करके अहिंसा के आधार पर विवेक के साथ प्रयोग में लाना चाहिए। यह श्रावक दातार का प्रथम कर्तव्य है। 4. घुना हुआ खाद्य पदार्थ व अन्न कदपि प्रयोग न करें।
5. जल शुद्धि-जल को विवेक के साथ छानना तथा जीवों की रक्षा हेतु जीवानी करना । 6. दुग्धशुद्धि - स्वच्छ बर्तन में, प्रासुक जल से गाय-भैंस के थनों को धोकर पोंछकर दूध दुहना चाहिए | दुहने के पश्चात् ढंककर रख दे या ले आएँ। फिर दूसरे बर्तन में अच्छे छन्ने से छानकर 48 मिनिट के अन्दर दूध को गर्म कर लें। उबला दूध यदि बिगड़े नहीं तो 24 घंटे तक काम आ सकता है।
7. घृतशुद्धि-शुद्ध दही से निकले मक्खन को तत्काल अग्नि पर रखकर गर्म कर घी बना लेना चाहिए। यह अठपहरा होना चाहिए, अर्थात् जो क्रिया दूध निकालने से लेकर दही जमाना, मक्खन निकालना तथा घी बनाना आठ पहर के अन्दर - अन्दर पूर्ण हो जाये उसे अठपहरा घी कहते हैं। कच्चे दूध की क्रीम से बना घी अभक्ष्य होता है।
8. दहीशुद्धि - उबले दूध को ठंडाकर चाँदी का रुपया या नारियल की ओपरी, या संगमरमर का टुकड़ा, इनको साफकर धोकर इनसे दही जमाना चाहिए । फिर इस टुकड़े को धोकर रख लें।
9. तेलशुद्धि-तेल भी साफ वस्तुओं से साफ छने पानी से धोकर ही, छने पानी से धुली हुई मशीनों से निकलवाना चाहिए।
10. शक्करशुद्धि - बाजार से लायी शक्कर को साफ कर लें फिर शुद्ध पानी में डालकर पकाकर बूरा बना लेते हैं।
11. सब्जियों की शुद्धि-सब्जी, फलों को पहले प्रासुक जल में धोकर ही चौके में ले जाना चाहिए।
12. फलों ने यदि सड़ना प्रारम्भ कर दिया हो तो ऐसे फलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 13. ईंधनशुद्धि- आहार बनाने के लिए अच्छी सूखी एवं जीव से रहित लकड़ी का ही ईंधन के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
14. बर्तनों की शुद्धि- - आहार बनाने में प्रयुक्त होने वाले बर्तन सूखे, मंजे एवं गड्ढे रहित
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