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________________ कीमत एक हजार रुपये है। दूसरी मूर्ति की कीमत दस हजार रुपये है तथा तीसरी मूर्ति की कीमत एक लाख रुपया है। राजा अलग-अलग दाम सुनकर चकरा गया। तीनों मूर्ति एक जैसी हैं। परन्तु कीमत अलग-अलग क्यों है? उसका कारण पूछा गया। तब उस व्यक्ति ने एक सींक मँगवाई। उस सींक को उस व्यक्ति ने एक मूर्ति के कान में डाली, वह दूसरे कान से निकल गई। अब दूसरी मूर्ति के कान में डाली, वह सींक मुख से निकल गई, अब तीसरी मूर्ति के कान में डाली, वह उसके हृदय में उतर गई। अब राजा उसकी अलग-अलग विशेषता समझ गया कि जो मूर्ति उपदेश सुनती है तो वह कान से निकाल देती हैं उपदेश ग्रहण नहीं करती। उसकी कीमत बहुत कम है और जो दूसरी मूर्ति उपदेश सुनती है, और ग्रहण कर मुख से दूसरों को सुना देती है। उसकी कीमत कुछ अधिक है और तीसरी उपदेश सुनकर उसके बारे में सोचती है उसकी कीमत सबसे अधिक है। उसी प्रकार जो श्रोता एक कान से उपदेश सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं, उनकी कीमत नहीं परन्तु जो सुनकर दूसरों को समझा देते हैं, वे कुछ अच्छे हैं। लेकिन जो सुनकर अपने हृदय में उतार लेता है, वह श्रोता सबसे अच्छा है। यदि वक्ता व श्रोता योग्य हों तो सभा भी सुशोभित होती है। दुःखमयी पर्याय क्षणभंगुर सदा कैसे रहे। अमर है ध्रुव आत्मा वह मृत्यु को कैसे वरे ॥ ध्रुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ 16
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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