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________________ खरीद लेते हैं, और शेष बची अशर्फियों सहित अपने पिता को भोजन सामग्री ले जाकर दे देते हैं। सबने पहले तो बहुत अच्छा खाया, साथ में अपने अड़ोस-पड़ोस वालों को भी खिलाया, और भविष्य के लिए बची अशर्फियाँ अपने पास जोड़ कर रख लेते हैं। यह दृश्य देखकर कमाऊ बेटा व उसकी पत्नी बहुत ही शर्मिन्दा होते हैं तथा अपनी भूल पर अन्दर ही अन्दर पछताने लगते हैं। आज चौथे दिन पुजारी बेटे का नम्बर था। सेठ जी दस रुपये देकर कहते हैं कि 'बेटा जाओ, बाजार से इन रुपयों की भोजन सामग्री ले आओ। आज तुम्हारी बारी है।' 'ठीक है पिताजी कहकर बेटा बाजार भोजन सामग्री लेने चला जाता है। अब रास्ते में उसे एक जिनमन्दिर दिखाई पड़ता है। वह देखता है बहुत से लोग मन्दिर में पूजा पाठ का आनन्द ले रहे हैं। वह भोजन सामग्री लाना तो भूल जाता है और दस रुपये की पूजा सामग्री खरीद लेता है। जिनमन्दिर में पहुँचता है और पूजा-पाठ करता हुआ जिनेन्द्र भक्ति में खो जाता है। इसका सारा दिन यहीं पर व्यतीत हो जाता है। इधर घर वाले प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब भोजन सामग्री आये और कब भोजन बने। इधर वह पुजारी पुत्र जिनेन्द्र भगवान की भक्ति में इतना तल्लीन हो गया कि अन्य सब बातें भूल गया। ____ अब इस जिनमन्दिर में रहने वाले देव विचारने लगे देखो यह तो भगवान की भक्ति में लीन है और इसके घर वाले सब भूखे बैठे हैं, इसलिए इसकी सहायता करनी चाहिए। यह सोच कर एक देव ने उस पुजारी का रूप बनाया और गाड़ियों में भोजन सामग्री भरकर उस सेठ के घर पहुँचा देता है। भोजन बनता है, सब खूब अच्छी तरह खाते-पीते हैं, पड़ोसियों को भी खिलाते-पिलाते हैं, और भोजन सामग्री भविष्य के लिए बचाकर भी रख लेते हैं। इधर पुजारी पुत्र को कुछ पता नहीं कि घर पर क्या हुआ और क्या नहीं हुआ। यह दृश्य देख कमाऊ बेटा बहुत ही शर्मिन्दा होता है और यह मान जाता है कि वास्तव में सब भाई मेरे से अधिक भाग्यशाली हैं। मैं व्यर्थ ही कमाने का झूठा अहंकार करता था। ___इधर पुजारी पुत्र जब पूजनं कार्य समाप्त होता है तो बड़ा पश्चाताप करने लगता है, अपनी इस क्रिया पर, सोचता है कि आज तो पिताजी बहुत ही नाराज होंगे, सभी लोग भूखे बैठे होंगे। वह डरता हुआ खाली हाथ पिता जी के पास पहुँचता है। हाथ जोड़कर कहता है कि-'पिताजी मेरी भूल माफ कर दीजिए, मैंने जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति में आकर आप सभी को आज भूखों मार डाला, अब मेरे से ऐसी भूल कभी नहीं होगी।" पिताजी कहते हैं-'अरे यह क्या कह रहे हो, अभी तो तुम अनेक गाड़ी भोजन सामग्री पहुंचाकर गये थे।' पुजारी कहता है-"नहीं पिताजी, मैं नहीं पहुँचाने आया था, मैं तो मन्दिर में पूजन ही करता रहा हूँ। अब सबकी समझ में आ जाता है कि आज जो भोजन सामग्री आई थी, वह देवकृत थी। (380) D -
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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