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________________ [ ७४ ] अमितगति ने एक दिन-रात के कायोत्सर्गों की कुल संख्या अट्ठाईस मानी है।' वह इस प्रकार है १ - स्वाध्याय काल में २- वन्दना काल में १३- प्रतिक्रमण काल में ४- योगभक्ति काल में २ पाँच महाव्रतों सम्बन्धी अतिक्रमणों के लिये १०८ उच्छूवासों के कायोत्सर्ग करने की विधि रही है। कायोत्सर्ग करते समय यदि उच्छ्वासों की संख्या में सन्देह हो जाए अथवा मन विचलित हो जाए तो आठ उच्छ्वासों के अतिरिक्त कायोत्सर्ग करने की विधि है । ऊपर के विवरण से सहज ही निष्पन्न होता है कि प्राचीनकाल में कायोत्सर्ग मुनि की दिनचर्या का प्रमुख अंग था । समाचारी प्रकरण में भी अनेक बार कायोत्सर्ग करने का उल्लेख है। 3 दशवे - कालिक चूलिका में मुनि को बार-बार कायोत्सर्ग करने वाला कहा गया है । * कायोत्सर्ग का फल १- अमितगति श्रावकाचार ८|६६-६७ १२ ६ कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त के रूप में भी किया जाता है, अतः उसका एक फल है - दोष - विशुद्धि | अपने द्वारा किये हुए दोष का हृदय पर भार होता है । कायोत्सर्ग करने से वह हल्का हो जाता है, हृदय प्रफुल्ल हो जाता है अतः उसका दूसरा फल है-हृदय का हल्कापन । ८ अष्टविंशतिसंख्यानाः कायोत्सर्गा मता जिनैः 1 अहोरात्रगताः सर्वे, षडावश्यककारिणाम् || स्वाध्याये द्वादश प्राज्ञः वंदनायां षडीरिताः । अष्टौ प्रतिक्रमे योगभक्तौ तौ द्वावुदाहृतौ ॥ - उत्तराध्ययन २६/३८-५१ । ४- दश० चू० २७ । २- मूलाराधना २।११६ विजयोदया । प्रत्यूषसि प्राणिधादिसु पंचस्वतीचारेषु अष्टशतोच्छ्वासमात्रकालः कायोत्सर्गः । कायोत्सर्गकृते यदि शंक्यते उच्छवासस्य स्खलनं वा परिणामस्य उच्छ्वासानामष्टकमधिकं स्थातव्यम् । अभिक्खणं काउस्सगा कारी ।
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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