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जित कर इस धर्म में शामिल किया बौर जैन धर्म का बहुल प्रचार प्रसार किया।
राजस्थान में कलात्मक मन्दिर, जैन साहित्य आदि विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त जितने भी विशिष्ट संघ और गच्छों का वर्णन प्राप्त होता है वे सभी राजस्थान की ही देन है। भ० महाबीर के समय में मी राजस्थान में जैन धर्म प्रचलित था; लेकिन यह बहुत पीछे के आधारों पर मिलता है। ऐसा वर्णन भी मिलता है कि म०महावीर धर्म प्रचारार्थ श्रीपाल - नगर पधारे थे और वहां उन्होंने गौतम गणधर को जैन बनाया । मतः इस परिवाम पर पहुँचा जा सकता है कि उस समय भी जैन धर्म का प्रचार यहाँ हुआ था ।
जेनों का सबसे प्राचीन शिलालेख 'बड़ले' में मिलता है। इसके अतिरिक्त मथुरा, उदयपुर आदि राजस्थान के सभी प्रमुख प्रमुख स्थलों में जैन धर्म सम्बन्धी अनेक कलात्मक वस्तुएं देखी जा सकती हैं। मौयों के बाद भी यह सिद्ध किया जाता है कि चन्द्रगुप्त भी जैन धर्म का अनुयायी था । १५ वीं शती के एक कवि ने कहा है कि अशोक जैनों का तथा बौद्धों का सम्राट माना जाता था । यह भी जानने को मिलता है कि जिस प्रकार राजा सम्प्रति धर्म का प्रचार किया था । उसी प्रकार अशोक ने जैन धर्म का प्रचारप्रसार किया था। इससे आगे यूनानी लोगों से भी पश्चिमी भारत में जैन धर्म की क्या स्थिति रही इसके विषय में सम्पूर्ण विवरण मिलता है सबसे अधिक जैन धर्म का प्रचार जयसिंह कुमारपाल के समय में हुआ था, उनकी यह हार्दिक इच्छा थी कि जैन धर्म एक आदर्श धर्म के रूप में तैयार हो । उन्होंने इस सम्बन्ध में काफी प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप जैसलमेर आदि स्थानों में काफी धम-प्रचार कार्य हुआ जिससे यह स्थान जैनों का गढ़ माना जाता है।
इसके अनन्तर प्रश्नोत्तरों का भी कार्यक्रम चला। द्वितीय दिवसीय कार्यवाही
दिनांक २६-१०-६४ : प्रातः 'लाल कोटड़ी' में आचार्यश्री के सान्निध्य में जैन दर्शन एवं संस्कृति परिषद् के दूसरे दिन का कार्यक्रम रखा गया । आचार्यश्री के मंगल पाठ व सुनिश्री दुलीचन्दजी की गीतिका के पश्चात् कार्यवाही प्रारम्भ की गई ।