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________________ दूसरी धाराओं के संरक्षक जैसे-जैसे मिटते गए, वैसे-वैसे उनका साहित्य अपने संरक्षकों के अभाव में वैदिक धारा के प्रबल प्रवाह में सम्मिलित होता गया। साहित्य की कसौटी वैदिक साहित्य का मुख्य भाग यज्ञ था। उसका विकास उत्तरोत्तर होता रहा। समूचा यजुर्वेद उसीसे अनुप्राणित है। ब्राह्मण ग्रन्थों में यश की परंपरा और आगे बढ़ गई थी। औपनिषदिक धारा, जिसे श्रमणों की धारा कहा जा सकता है, यज्ञों का विरोध करती थी। उसका प्रवाह अध्यात्म विद्या की ओर था। हम कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ? क्यों आए हैं ? कहाँ जाएंगे? आदि-आदि प्रश्नों पर विचार किया जाता था।' अध्यात्म विद्या श्रमण साहित्य की कसौटी थी। त्रिवर्ग-विद्या ( अर्थ, धर्म और काम ) लौकिक साहित्य की कसौटी थी। इन तीनों कसौटियों के आधार पर हम जान सकते हैं कि अमुक साहित्य किस धारा का है या किस धारा में प्रवाहित है। उपनिषदों की धारा आचार्य शंकर ने जिन दम उपनिषदों पर भाष्य लिखा, वे प्राचीन माने जाते हैं। उनके नाम हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, तेत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक। डा. बेलबेलकर और रानाडे के अनुसार प्राचीन उपनिषदों में मुख्य ये हैं-छान्दोग्य, बृहदारण्यक, कठ, ईश, ऐतरेय, तैत्तिरीय, मुण्डक, कौषीतकि, केन और प्रश्न'। उनमें से कुछ उपनिषदों में मुख्य वेद एवं वैदिक धारा के प्रति जो विरोध है उसे देख सहज ही प्रश्न होता है कि वेदों और उसकी धारा का विरोध करने वाले उपनिषद् क्या वेदिक साहित्य की कोटि में आ सकते हैं ! मुण्डकोपनिषद में वेदों को अपरा विद्या कहा गया है। परा विद्या, जिससे ब्रह्म की प्राप्ति होती है, उससे भिन्न है। परा विद्या अध्यात्म या आत्म विद्या है। ॐकार के द्वारा उस आत्मा का ध्यान किया जाता था। प्रश्नोपनिषद् में भी इस तथ्य की विशेष १-केनोपनिषद् १ २-हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलॉसफी भाग २ पृ०६७-६० ३-मण्डकोपनिषद् ११११५ ४-मुण्डकोपनिषद् १५ ५- मुण्डकोपनिषद् १६
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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