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जैन दर्शन और संस्कृति परिषद् श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी सभा
के तत्वावधान में हुए प्रथम अधिवेशन (बीकानेर) की कार्यवाही
दिनांक २५ अक्टूबर १६६४ का
प्रथम खुला अधिवेशन बीकानेर, २५ अक्टूबर ६४ । प्रातः रेलवे स्टेशन के समक्ष 'अणवत पण्डाल' में 'जैन दर्शन और संस्कृति परिषद्' का खुला अधिवेशन आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में उनके मंगल सूत्रोच्चारण के साथ प्रारम्भ हुआ। कार्यवाही प्रारम्भ करने के पूर्व श्री पारमार्थिक शिक्षण संस्था की बहिनी ने मंगल गीत गाये। सर्वप्रथम श्री शैलकुमारी बोथरा ने संस्कृत पछी का वाचन किया। तदनन्तर श्री मोहनलालजी बांठिया ने स्वागत भाषण पढ़ते हुए अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किये।
श्री गोपीचन्द जी चोपड़ा ने संयोजकीय वक्तव्य में दर्शन की तुलना गौ के सुग्ध से करते हुए कहा कि जिस प्रकार गौ का दुग्ध स्वयं सुपाच्य होता है किन्तु वह जब हलवाइयो के पास चला जाता है तो दुश्पाच्य बन जाता है, उसी प्रकार दर्शन विद्वानों के पास जाकर जटिल व दुपाच्य हो जाता है, वस्तुतः दर्शन अपने आप में सरल व बोधगम्य है ; अपेक्षा है उसके हार्द का समझने की।