SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SEKSI W - PM जैनधर्म का प्रभाव १ हम वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। हमारे घर के सामने जैन मन्दिर जी था। वहाँ त्याग का कथन हो रहा था । मुझ पर भी प्रभाव पड़ा और मैंने सारी उनके लिये रात्रि भोजन का त्याग कर दिया । उम समय मेरी श्रायु दस साल की थी। एक दिन मैं और पिता जी गाँव जा रहे थे। रास्ते में घना जङ्गल पड़ा । हम अभी बीच में ही थे कि एक श्री गणेशप्रमाद जी वर्णी शेर-शेरनी को अपनी ओर श्राते देखा। मैं डरा, परन्तु मेरे पिता जी ने धीरे-धीरे णमोकार मन्त्र का जाप श्रारम्भ कर दिया। शेर-शेरनी रास्ता काट कर चले गये । मैंने आश्चर्य से पूछा, "पिता जी! वैष्णव-धर्म के अनुयायी होते हुए जैनधर्म के मन्त्र पर इतना गहरा विश्वास" ? पिता जी बोले कि इस कल्याणकारी मन्त्र ने मुझे बड़ी-बड़ी आपत्तियों से बचाया है। यदि तुम अपना कल्याण चाहते हो तो जैनधर्म में दृढ़ श्रद्धा रखना । मुझे जैनधर्म की सचाई का विश्वास हो गया। इसकी सचाई से प्रभावित होकर समस्त घर बार और कुटुम्ब को छोड़कर फाल्गुण सुदी सप्तमी वीर सं० २४७४ को आत्मिक कल्याण के हेतु मैंने जैनधर्म की तुझक पदवी ग्रहण करली' । १ मेरी जीवन गाथा, गणेशप्रसाद वर्णी जैन अन्यमाला, भदैनी घाट, बनारस । कालय जैन-सन्देश, [ ५२५.
SR No.010083
Book TitleBhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mitramandal Dharmpur
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1955
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy