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जिसे देखते ही उन्होंने चीख मारी, जिसे सुन कर रमण का एक शिष्य वहां आ गया, और उस जहरीले काले सांप को हाथों में लेकर उसके फणे से प्यार करने लगा । अंग्रेज ने आश्चर्य से पूछा कि क्या तुम्हें इससे भय नहीं लगता ? उसने कहा, जब इसको हमसे भय नहीं तो हमें इससे भय कैसा ? जहां अहिंसा और प्रेम होता है वहां भयानक पशु तक भी योग-शक्ति से प्रभावित होकर अपनी शत्रुता को भूलकर विरोधियों तक से प्रेमव्यवहार करने लगते है, "
वास्तव में हिंसा धर्म परम धर्म है और यदि जैन धर्म को विश्व धर्म होने का अवसर मिले तो अहिंसा धर्म को अपना कर यही दुःखभरा संसार अवश्य स्वर्ग हो जाये" ।
अनेकान्तवाद तथा स्याद्वाद
"The Anekantvada or the Syadvada stands unique in the world's thought If followed in practice, it will spell the end of all the warring beliefs and bring harmony and peace to mankind."
Dr. M. B. Niyogi, Chief Justice Nagpur: Jain Shasan Int.
हर एक वस्तु में बहुत से गुण और स्वभाव होते हैं । ज्ञान में तो उन सब को एक साथ जानते की शक्ति है परन्तु वचनों में उन सब का कथन एक साथ करने की शक्ति नहीं। क्योंकि एक समय एक ही स्वभाव कहा जा सकता है । किसी पदार्थ के समस्त गुणों को एक साथ प्रकट करने के विज्ञान को जैन धर्म अनेकान्त
अथवा स्याद्वाद के नाम से पुकारता है । यदि कोई पूछे कि संखिया जहर है या मृत ? तो 'स्याद्वादी यही उत्तर देगा कि जहर भी है अमृत भी तथा जहर और अमृत दोनों भी |
१. उर्दू मासिक पत्र 'ओ३म्' (जून सन् १९५०) १० २० । 3. Prof. Dr. Charolotta Krause: This book's P. 110.
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