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सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे , त्रिशला की आंखों के तारे ॥१॥ छोड़े सब झमट संसारी , स्वामी हुये बाल ब्रह्मचारी IRall पंचमकाल महादुखदाई, चान्दनपुर महिमा दिखलाई ॥२१॥ टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया ॥२२॥ सोच हुआ मन में ग्याले के, पहुंचा एक फावड़ा ले के ॥२शा सारा टीला खाद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया ॥२४॥ योधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा तब तेरा ॥२४॥ ठण्डा हुवा तोप का गोला , तब सब ने जयकारा बोला ||२६|| मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया ॥२७॥ बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुम को लाने की ठहराई IRI तुमने तोड़ी सैंकड़ों गाड़ी,६ पहिया मसका नहीं अगाड़ी ॥२६॥ ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया ॥३०॥ पहिले दिन बैषाख बढी को, रथ जाता है तीर नदी को ॥३३॥ मैना गूजर" सब पाते हैं, नाच कूद चित उमगाते हैं ॥३२॥ स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का तुम मान बढ़ाया ॥३॥ हाथ लगे ग्याले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही ॥२४॥ मेरी है टूटी सी नइया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया ॥३॥ मुझ पर स्वामी जरा कृपा कह, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर ।।३६।। तुम से मैं अरु कुछ नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तुम दर्शन पाऊँ ॥३७|| चालीसे को 'चन्द्र' बनावे, वीर प्रभु को शीश नवावे ॥३८॥
नित चालिस ही बार, पाठ करे चालीस दिन । खेवे सुगन्ध अपार, वर्द्धमान के सामने ॥३६॥ होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय . जो। जिसके नहीं संतान, नाम वंश जग में चले ॥४०॥
१ बाल ब्रह्मचारी, खण्ड २ । 2. Miraculous Flace of Lord Mahavira. Vol. 1. १३६ ]