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तीर्थंकर स्वीकार करते हैं, तो जैन धर्म बौद्ध धर्म से अवश्य हो बहुत प्राचीन है और बौद्ध धर्म की शाखा का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता' ।
जैन धर्म हिन्दू धर्म से बिल्कुल स्वतंत्र है, उसकी शाखा या रूपान्तर नहीं है", नास्तिक नहीं है' नग्नता तो वीरताका चिन्ह है', अहिंसा वीरों का धर्म है । जैन धर्म के पालने वाले बड़े बड़े सम्राट और योद्धा हुये हैं ।
हम कौन हैं ? कहाँ से आये ? कहां जायेंगे ? जगत क्या है ? इन प्रश्नों के उत्तर में जैन धर्म कहता है कि आत्मा, कर्म और जगत अनन्त है" । इनका कोई बनाने वाला नहीं । आत्मा अपने कर्मफल का भोग करता है, हमारी उन्नति, हमारे कार्यों पर ही निर्भर है। इस लिए जैन धर्म ईश्वर को कर्मानुयायी, पुरस्कार और शान्तिदाता स्वीकार नहीं करता ।
५. महात्मा बुद्ध पर वीर प्रभाव, खंड २ |
२ औौन धर्म और हिन्दु धर्म, खंड ३ ।
३. जैन धर्म नास्तिक नहीं, खण्ड १ ।
४. बाइस परिषयजय. खण्ड २ ।
५. जैन धर्म वीरों का धर्म है, खंड ३ ।
६ जैन सम्राट, खण्ड ३ ।
७८. भ० महवीर का धर्मापदेश खण्ड २ ।
६. लेखक का पूरा लेख, "जैन धर्मं माहात्म्य" ( मूरत ) भाग ११. १११ से १६५ ।
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