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________________ জাতীখলা सुन्दर सम्पादन के लिये सम्पादक अभिनन्दनीय है। पाठकों को इसे मंगाकर स्वाध्याय करना चाहिये । छपाई-सफाई, गेटप आदि समस्त चीजें आकर्षक हैं। कमड़ प्रान्तीय ताइपत्रीय-ग्रन्थसूची-सम्पादकः विद्याभूषण पं० के० भुजबली शास्त्री मूडबिद्री; प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ काशी; पृष्ठ संख्याः ३०+३२४; मूल्य तेरह रुपये। श्री पं० के० भुजबली शास्त्री जैन समाज के माने हुए पुरातत्वज्ञ हैं, आपके द्वारा सम्पादित यह सूचि बहुत सुन्दर निकली है । प्रस्तुत सूची-पत्र में जैनमठ मूडबिद्री, श्री वीरवाणी-विलास जैन-सिद्धान्त-भवन मूडबिद्री, जैनमठ कारकल, आदिनाथ ग्रन्थभाण्डार अलियूर एवं सिद्धान्त वसदि मूडबिद्री आदि प्रन्थागारों के ताडपत्रीय प्रन्थों की सविवरण नामावली है । सिद्धान्त, अध्यात्म, धर्म, योगशास्त्र, प्रतिष्ठा, व्रतविधान अाराधना, न्याय तथा दर्शन, व्याकरण, कोश, काव्य, नाटक. अलंकार, छन्दःशास्त्र, नोति तथा सुभाषित, पुराण, चरित्र, कथा, इतिहास, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित-शास्त्र, मन्त्रशाला, लोक विज्ञान, शिल्पशास्त्र, लक्षण, समीक्षा, पाकशास्त्र, क्रियाकाण्ड, म्तोत्र, भजन तथा गीत एवं प्रकीर्णक विषयिक ग्रन्थों की आकरादि क्रम से सूची दी गई है। इसमें ३५३८ ग्रन्थों की संक्षिप्त परिचय सहित अनुक्रमणिका है तथा लगभग १२५ ऐसे अप्रकाशित ग्रन्थों की नामावली दी है, जो जैन साहित्य की अमूल्य निधि हैं। सम्पादक की प्रस्तावना महत्वपूर्ण और मौलिक है, इससे जैन साहित्य का सामान्य आभास मिल जाता है। भारतीय ज्ञानपीठ काशी ने दक्षिण प्रान्तीय भाण्डारों की ग्रन्थ तालिका का यह प्रथम भाग तैयार कराकर जैन साहित्य का महान उपकार किया है। क्योंकि जैन साहित्य के प्रमुख निर्माताओं ने दक्षिण प्रान्त को ही गौरवान्वित किया है। दि० जैन साहित्य को शुद्भतम प्रतियाँ दक्षिण के शास्त्रागरों में ही वर्तमान हैं। वहाँ प्रत्येक मन्दिर में ही श्रुत देवता की निधि वर्तमान नहीं है, प्रत्युत कुछ व्यक्तियों के पास भी वाङ्मय के अमर रत्न हैं, जिनके अन्वेषण की नितान्त आवश्यकता है। प्रस्तुत अनुक्रमणिका में प्रत्येक ग्रन्थ के सम्बन्ध में कर्ता का नाम, पृष्ठ संख्या, प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या, प्रति पंक्ति अक्षर संख्या, लिपि, भाषा, विषय, लेखन काल, दशा, पूर्ण-अपूर्ण, शुद्ध-अशुद्ध आदि बातें दी गई हैं, जिससे पाठक प्रत्येक ग्रन्थ के सम्बन्ध में सामान्य परिचय प्राप्त कर सकता है। तालिका निर्माण में अच्छा परिश्रम किया गया है, कुछ ग्रन्थों के मंगलाचरण भी दे दिये गये हैं। मागका को सर्वात सुन्दर बनाने में कोई बात उठा नहीं रखी है।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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